एक दिन सब कुछ ख़त्म हो जाएगा

15-05-2025

एक दिन सब कुछ ख़त्म हो जाएगा

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

रोज़ सुबह होती है, एक नई उम्मीद, सपने, एक नए जीव के जन्म के साथ और रोज़ कई सारे लोग अपनी आख़री साँस लेते हुए, परम तत्त्व में विलीन भी जाते हैं। यह संसार जितना प्रकाश की गति से आगे बढ़ रहा है, उसके पीछे का हिस्सा उतनी ही तीव्रता से नष्ट भी होता जा रहा है। 

कितना कुछ है; इस संसार में जानने के लिए। जितना जानने की कोशिश करते हैं; उतना लगता है, अभी बहुत कुछ जानना शेष है। 

शुरूआती दौर में मुझे गणित विषय बहुत अच्छा लगता था, उसके बाद भौतिकी शास्त्र पसंद आने लगा। जब लगने लगा, मैंने अपने आस पास की चीज़ें समझ ली हैं, तो हाथों में इतिहास आ गया। फिर लगा; अभी तो बहुत कुछ जानना शेष रह गया है। जैसे-तैसे इतिहास को जाना, तो नैतिक विषयों पर प्रश्न चिह्न उठने लगे। 

“पढ़ने की जिज्ञासा हमें किताबों के पास ले जाती है, जानने की जिज्ञासा उस हर एक वस्तु के पास जिसमें ज्ञान छुपा है।”

नैतिक उन्नति करने के बाद भी मेरा मन अस्थिर था। जीवन के पच्चीस बरस में लगभग पच्चीस विषय पढ़ने के बाद भी लगता था, बहुत कुछ है, जो मैं अभी तक जान नहीं पाई हूँ। 

किताबों में जो जवाब नहीं मिले, उन्हें जीवन की पुस्तक में ढूँढ़ने लगी। बार-बार जीवन के प्रश्न हल करने में असफल होने के बाद अन्ततः आध्यात्म की ओर पहुँच गई। 

“भौतिक जीवन जीन प्रश्नों के उत्तर से बेख़बर है, आध्यात्म उसे मात्र एक शब्द में सार्थक कर देता है।”

आध्यात्म की कोई किताब नहीं है, यह विषय स्कूल, कॉलेज में नहीं पढ़ाया जाता। यह तो आत्मानुभूति का एक पथ है। जिस पर चल कर इंसान परम सत्य से रूबरू होता है। 

अभी आध्यात्म के मात्र शुरूआती कुछ पन्ने पढ़े हैं। मगर इतने में ही ख़ुद में परिपूर्णता महसूस होती है। 

इस विषय को पढ़ने पर समझ आया, “ज्ञान भवसागर नहीं है, आध्यात्म की नाव पर सवार होकर, गहरे से गहरे समन्दर को पार किया जा सकता है।”

इंसान बहुत भावुक प्राणी है, पूर्ण सत्य के अभाव में वह मोह में उलझ जाता है। कुछ पीछे छूटने से, किसी अपने के बिछड़ जाने से, मन चाहा न मिलने से, धोखा और अपनों के तिरस्कार से वह टूट जाता है। उसे यह संसार दलदल और अभिशाप लगने लगता है। जबकि असल सत्य यह है, की जीवन में सबकुछ क्षणभंगुर है। एक दिन हर रिश्ता, नाता, प्रेम, दोस्ती, सपना, पहचान, बचपन, जवानी सब कुछ ख़त्म हो जाएगा, यह पहले से तय है। 

जिस तीव्रता से हम बड़े हो रहे हैं, उसी तीव्रता से हमारी आयु सीमा कम हो रही है। हमें चाहिए कि हम जीवन के असल सत्य को जानें, अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करने का प्रयास करें। 

वरना जीवन की टाइम लिमिट तो एक दिन ख़त्म हो ही जाएगी और एक दिन यह संसार भी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
चिन्तन
स्मृति लेख
कहानी
ललित निबन्ध
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में