गुमराह तो वो है

15-03-2020

गुमराह तो वो है

ममता मालवीय 'अनामिका' (अंक: 152, मार्च द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

गुमराह तो वो हैं 
जो घर से निकला नहीं,
मंज़िल की चाह में,
जो आग में पिघला नहीं।
क्या समझेगा वो जुनून-
मंज़िल पाने का...
जिसने ख़्वाब तो बुन लिए,
मगर हक़ीक़त में बदले नहीं।


गुमराह तो वो है 
जिसने ख़ुद को जाना नहीं,
अपनी अंदर की शक्ति को-
जिसने पहचाना नहीं।
क्या समझेंगे वो हौसला-
सपनों की उड़ान का,
जिसने मंज़िल पाने की चाह में 
ख़ुद को मिटाया नहीं।


गुमराह तो वो है जिसे 
ख़ुद पर आत्मविश्वास नहीं,
अपने ही कृत्यों में जो 
ख़ुद के साथ नहीं।
क्या समझेंगे वो मान- 
अपने आत्मसम्मान की रक्षा का,
जो अपने स्वाभिमान के लिए 
कभी खड़ा हुआ नहीं।


गुमराह तो वो है जो 
अपनों के साथ नहीं,
इंसानियत की बलि देता, 
मानवता का अहसास नहीं।
क्या समझेंगे वो प्यार-
अपनों के साथ होने का,
जो कभी किसी के दर्द का 
बना सहभागी नहीं।

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