बात क्या थी उस रात में
अवनीश कश्यपबात क्या थी उस रात में,
चाँद भी ख़ामोश था,
आकर्षण विहीन तारे भी थे,
भाँति उस मृत देह के
आकाश भी ख़ामोश था।
बात क्या थी उस रात में,
मानो शोक में चिड़िया भी थी,
चहचहाट कहीं ढूँढ़ रही थी,
पवन ने उसका साथ दिया था,
पत्तों की स्थिरता का प्रमाण दिया था।
बात क्या थी उस रात में
भयावही उस रात ने क्या,
मानवों को अंतिम रात्रि का परिचय दिया था,
या विस्मयकारी उस रात ने
शान्ति का प्रस्ताव दिया था।
इन्हीं उलझनों में मेरे आँखों ने भी
शान्ति को स्वीकार किया था।
आख़िर बात क्या थी उस रात में?