छोटी सी ख़ुशी
वन्दना पुरोहितसुनीति अपने पति राकेश को खाना खिलाते हुए हमेशा की तरह बड़ी उत्सुकता से पूछती, “आज काहे का डेकोरेशन करके आए हो।”
राकेश जल्दी-जल्दी खाना खाते हुए बोलता, “बेबी शावर।”
सुनीती बोलती, “अरे वाह!”
जब भी राकेश के डेकोरेशन का एल्बम देखती तो उसे महिलाओं के विशेष प्रोग्राम का डेकोरेशन देख बहुत ख़ुशी होती; सोचती ‘वो महिलायें कितनी ख़ुशनसीब हैं जिनके लिए स्पेशल प्रोग्राम इतनी तैयारी के साथ होता है’। कभी-कभी तो राकेश को कहती, “मुझे भी कभी साथ लेकर जाओ मैं भी देखूँगी।”
राकेश अपनी दमदार आवाज़ में कहता, “वहाँ तुम्हारा क्या काम।”
सुनीता मुँह लटका कर बैठ जाती। एक दिन राकेश को फ़्लॉवर डेकोरेशन करना था तो फूल वाली चमेली की दुकान गया और उससे ऑर्डर के अनुसार फूल व फूल मालायें पैक करने को अपनी रौबदार आवाज़ में कहा। चमेली हमेशा की तरह मुस्कुराती हुई ऑर्डर पैक करने लगी। आज वह भी पूछ बैठी, “साहब कौन से प्रोग्राम का डेकोरेशन है?”
राकेश ने कहा, “करवा चौथ।”
चमेली ने पूछा, “आप सभी त्यौहार बड़ी साज-सज्जा से मनाते हो?”
राकेश ने बताया, “भाई ऑर्डर है। लोगों के लिए काम करता हूँ।”
चमेली उसकी तनाव भरी आवाज़ से चुप हो गई और ऑर्डर पैक कर उसे पकड़ा दिया। राकेश थैला उठाकर अपनी मोटरसाइकिल पर टाँग रहा था तभी चमेली दौड़ कर पास आयी और एक थैली पकड़ायी। उसने आश्चर्य से पूछा, “यह क्या?”
चमेली मुस्कुराई, “साहब, मेम साहब के लिए।”
राकेश ने थैली अपने बैग में रख ली और डेकोरेशन के लिए निकल पड़ा। वहाँ पहुँचा और अपने स्टाफ़ के साथ डेकोरेशन में लग गया।
शाम 6:00 बजे तक पूरा डेकोरेशन तैयार था पूजा करने वाली महिलाएँ अपने पति के साथ आयीं हुईं थीं। सभी महिलाएँ सोलह सिंगार कर सजीं थीं। उनके चेहरे भी ख़ुशी से चमक रहे थे। वहाँ का माहौल डेकोरेशन से और भी ख़ूबसूरत लग रहा था। पूजा कर चाँद के इंतज़ार में महिलाओं के चेहरे देखने लायक़ थे। चाँद बादलों की ओट में जा चुका था जैसे उनके प्रेम की परीक्षा ले रहा हो। आख़िर चाँद निकल आया सभी का इंतज़ार पूरा हुआ। सभी के लिए स्टाफ़ ने खाने की टेबल सजाई और जोड़े से बैठाया गया सभी पतियों ने अपनी-अपनी पत्नियों को पहले पानी फिर मिठाई खिलाकर व्रत पूरा करवाया। उनमें महिलाओं के चेहरे पर व्रत पूर्ण कर सुकून दिखाई दे रहा था। सभी हँसी ठहाका करते हुए अपने अपने घर को चल दिए।
राकेश व स्टाफ़ भी अपना शेष कार्य पूर्ण कर घर को चल दिए। घर पहुँचा तो देखा सजी सँवरी सुनीति पूजा कर थाली लिए राकेश के इंतज़ार में बैठी थी। राकेश के आते ही उसका चेहरा खिल उठा। चाँद के अर्घ का लोटा लिए दौड़ कर राकेश के पास गयी, “राकेश बहुत प्यास लगी है। पानी पिला दो ना।”
राकेश ने घड़ी देखी रात के 1:00 बज गए थे और अपने आप को अपराधी सा महसूस कर हल्के से मुस्कुरा कर पहले सुनीति को पानी पिलाया फिर अपना बैग लेकर चमेली की दी हुई थैली निकाली और उसमें से फूलों का गजरा लेकर अपनी सुनीति के बालों में सजाने लगा। सुनीति का चेहरा खिल उठा। प्रेम से राकेश को निहारती हुई उसकी बाँहों में सिमटती सुनीति बोली, “तुम हमारा कितना ख़्याल रखते हो। इतना काम होने के बाद भी तुम हमारे लिए गजरा लेकर आये।”
राकेश मन ही मन चमेली को धन्यवाद कर रहा था कि आज चमेली के कारण उसकी पत्नी की करवाचौथ यादगार बन गयी। तभी राकेश ने कहा, “भूख नहीं लगी क्या? चलो, आज दोनों साथ खाना खाते हैं। तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए खाना लगाता हूँ।”
सुनीति राकेश के इस बदलाव कोअचरज से देखती रह गयी। राकेश ने खाना लगाया।
पहला कौर सुनीति को खिलाया और उसके चेहरे को निहारते हुए बोला, “तुम्हें पूरा दिन भूखे रहने में कितनी तकलीफ़ होती होगी।”
सुनीति खाना खाते हुए बोली, “नहीं, बिल्कुल भी नहीं। तुम नहीं समझोगे।”
राकेश की इस चिंता ने उसे और भी अभिभूत कर दिया। दोनों खाना खाकर कमरे में आ गए।
सुनीति आज अर्से बाद अपनी स्पेशल फ़ीलिंग के स्वप्न को महसूस कर राकेश की बाँहों में खो गयी। राकेश उसे निहारता हुआ सोच रहा था मेरी सुनीति तो छोटी-छोटी बात में ही ख़ुशी ढूँढ़ लेती है। मैं सच में कितना ख़ुश नसीब हूँ। सोचते-सोचते, सुनीती के बाल सहलाते हुए न जाने कब दोनों मीठे सपनों में खो गये।