सुरंगमा यादव हाइकु - 1
डॉ. सुरंगमा यादव1.
जीवन घट
कर्म जल पूरित
बुलावा आया।
2.
कर्मों का फल
बिन सोचे करनी
त्रिशंकु बने।
3.
धरा कुटुम्ब
सब जन अपने
यही संस्कृति।
4.
लोभ न आये
देख पराया धन
बुरी बला ये।
5.
पीर परायी
अपनी-सी समझे
मनुज वही।
6.
निज सुख दे
परदुःख ले लेता
प्रिय सभी का।
7.
चंचल मन
आकर्षक बुराई
सहज खींचे।
8.
स्वयं पारखी
निज गुण ज्ञान का
आत्म मुग्ध मैं।