गहराई में उतरे बिना

01-08-2021

गहराई में उतरे बिना

जितेन्द्र 'कबीर' (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

उन विरह के नग़्मों में
आ नहीं पाई कभी उतनी तड़प
कि सुनकर उन्हें 
दौड़ा चला आए प्रियतम एक-बारगी,
गाने वाले ने गाया जिन्हें
भावों की गहराई में उतरे बिना ही
सिर्फ़ कौशल प्रर्दशन के लिए।
 
उन मिलन के लम्हों में
आ नहीं पाई कभी उतनी कशिश
कि भोग कर उन्हें
दुनिया भुला जाएँ दो लोग एक-बारगी,
मिलाने वाले ने मिलाया जिन्हें
मन से उनकी सहमति जाने बिना ही
सिर्फ़ अहम प्रर्दशन के लिए।
 
उस क़लम के शब्दों में
आ नहीं पाया कभी उतना असर
कि पढ़कर उन्हें
दिल में उतरता जाए लेखक एक-बारगी,
लिखने वाले ने लिखा जिन्हें
अनुभव की भट्ठी में तपे बिना ही
सिर्फ़ विद्वता प्रर्दशन के लिए।

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