ज़िन्दगी के ख़्वाब

01-03-2022

ज़िन्दगी के ख़्वाब

संजय वर्मा 'दृष्टि’ (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

शराब पीकर 
रातों को बने शहंशाह 
सुबह हो जाते भिखारी
बच्चे स्कूल जाते समय 
पापा से 
माँगते पॉकेट मनी 
ताकि छुट्टी के वक़्त दोस्तों को
खिला सके 
चॉकलेट।
  
फटी जेब और
खिसयाती हँसी 
बच्चों को दे न पाती
पॉकेट मनी 
और उनके लिए कभी कुछ कर न पाती 
बच्चों के चेहरे की हँसी को छीन लेती 
इसलिए होती शराब ख़राब। 
 
सुनहरे ख़्वाब दिखाती 
किन्तु वादे पूरे ना कर पाती 
डायन होती शराब 
पूरे परिवार को खा जाती 
और उजाड़ जाती 
ज़िन्दगी में बने हुए ख़्वाब। 

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