फिर आई है हिचकी
संजय वर्मा 'दृष्टि’हिचकियाँ जब आतीं
वह याद दिलातीं
संगिनी के पलों को
साथ फेरों का संकल्प
दुःख-सुख की साथी
एकाकीपन खटकता
परछाई नापता सूरज
पहचान वाली आवाज़ों में
खोजता मुझे दी जाने वाली
तुम्हारी जानी पहचानी पुकार
आँगन-मोहल्ले में सूनापन
विलाप के स्वर
तस्वीरों में क़ैद छवि
बहते अश्रु
तेज़ हो जाते
तुम्हारी पुण्य तिथियों पर
दरवाज़ा बंद करता
खालीपन महसूस
अकेलापन कचोटता मन
बिन तुम्हारे
हवाओं से उत्पन्न आहटें
देती संदेशा
मै हूँ ना
मृत्यु नाप चुकी रास्ता
अटल सत्य का
किन्तु सात फेरों का संकल्प
सात जन्मों का छोड़ साथ
कर जाता मुझे अकेला
फिर आई है हिचकी
मन ये कहता है कि
क्या तुम मुझे याद कर रही हो?
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