बिछोह
संजय वर्मा 'दृष्टि’हर किसी के जीवन में आता
और बोल कर नहीं आता
चुपके दबे पाँव आता
इसकी ख़बर
उम्र को भी पता नहीं चलती
डबडबाए नैना
मन अंदर से जब रोता
लगता आँसुओं का बाँध
फूटने वाला हो
जिसे रोक रखा हो
एलबम की तरह
पन्ने पलटते हाथों ने
जाते हुए हिलते हाथ
या मिलता संदेशा
रुँधे गले आँसू भरे नैन
जैसे अमर हो यादों के
जब याद करो और देखो
बिछोह
चाहे बिटिया ब्याही
या बेटे की हो पढ़ाई
दूर देश में रहते हो अपने
इनका बिछोह
जीवित इंसान है तब तक
और मरने के बाद भी
बिछोह रुला जाता।
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