उतरता रंग
संजय वर्मा 'दृष्टि’उस मिश्रित आबादी वाले मोहल्ले में किसी संस्था द्वारा महिला सभा आयोजित हुई। सभा में अमीर-ग़रीब सभी महिलाओं को आमंत्रित किया गया था। सभा शुरू होने से पहले एक अमीर महिला ने दिवाली के दिन महँगा बड़ा टीवी ख़रीदने की बात मौजूद महिलाओं को बताई। सभी ने उसकी बात सुनी, बधाई दी और मिठाई खिलाने को कहा। अमीर महिला ने अपनी अमीरी का बखान करते हुए सभी को घर आकर अपने महँगे टी.वी. पर कार्यक्रम देखने और मिठाई खाने आने का निमंत्रण दिया।
एक ग़रीब महिला ने एक दूसरी ग़रीब महिला की ओर संकेत करते हुए जवाब दिया, "बहनजी, हम लोग ज़रूर आयेंगी। इनके पतिदेव का एक बड़ी टीवी प्रतियोगता के लिए सिलेक्शन हुआ है, उसका दीवाली के दिन प्रसारण होगा। साथ ही मेरे बच्चे का भी डांस प्रतियोगिता में सिलेक्शन हुआ है, उसका भी प्रसारण उसी दिन होगा। दोनों का अगले दिन पुनः प्रसारण भी होगा। आप कहें तो हम दिवाली के दिन ही आ जाते हैं, आपको बधाई देने के साथ हम प्रसारण भी देख लेंगे।"
"हाँ, हाँ! आप सब ज़रूर आइए। देखिये तो हमने कितना सुन्दर टीवी ख़रीदा है। ऐसा टीवी मोहल्ले में किसी के पास नहीं होगा।"
दिवाली वाले दिन सभी महिलाएँ उस अमीर महिला के घर बड़ा और महँगा टीवी देखने के लिए गईं। जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ, ग़रीब महिला ख़ुशी और उत्साह से मानों अमीर बन गई। सब महिलाएँ उसे बधाइयाँ देने और उसके पति की तारीफ़ करने लगी। तारीफ़ व बधाइयों का यह दौर थमा भी नहीं कि बच्चे के डांस का प्रसारण आरम्भ हो गया।
जहाँ पर टीवी की तारीफ़ होनी थी, वहाँ पर गरीब महिलाओं के पति व बच्चे की तारीफ़ होने लगी। अमीर महिला की मिठाई और ग़रीब महिलाओं को बधाइयाँ, दिवाली के दिन यह अनूठा संयोग था।
अमीर महिला के चेहरे से घमंड का रंग उतरता चला गया।
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