सूरज

संजय वर्मा 'दृष्टि’ (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

हर रोज़ की तरह 
होती विदाई सूरज की
सूर्यास्त होता ये भ्रम
पाले हुए वर्षों से 
पृथ्वी के झूले में 
ऋतु चक्र का आनन्द लिए 
घूमते जा रहे 
सूर्योदय–सूर्यास्त की राह 
मृगतृष्णा में। 
सूरज तो आज भी 
चला रहा ब्रह्माण्ड 
सूरज से ही जग जीवित
पंचतत्त्व अधूरा 
अर्थ-महत्त्व ग्रहण का सब जानते 
हे सूरज 
तुम कभी विलुप्त न होना।

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