उस दिन नई सुबह होगी
दीपमाला
जिस दिन टूटेंगी सामाजिक
आडंबरों की बेड़ियाँ
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
जब रात, सुनसान सड़कों पर
हर स्त्री होगी सुरक्षित।
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
जिस दिन समान होंगे अधिकार
स्त्री और पुरुष के समाज में
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
जिस दिन मनाई जाएँगी ख़ुशियाँ
बेटियों के जन्म लेने पर
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
जिस दिन हर बच्चा जा सकेगा स्कूल,
बाल श्रम का होगा पूरी तरह निषेध
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
जिस दिन बहुओं को मिलेगा
बेटियों जैसा प्यार और सम्मान
ससुराल में मिलेगा मायके जैसा दुलार,
उस दिन सचमुच नई सुबह होगी।
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