स्त्री और पुरुष का रिश्ता: सम्मान या दंभ
दीपमाला
आज सुबह भी जब कमला आई तो बड़े ग़ुस्से में थी। क्रोध और दर्द से उसका चेहरा तमतमा रहा था। पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ा रही थी? बोलते-बोलते काम में लग गई पर इसकी झल्लाहट ख़त्म नहीं हुई।
मैंने पूछा कि क्या आज भी तेरा तेरे पति से झगड़ा या मार-पिटाई हुई है पर वह मौन रही और कोई उत्तर नहीं दिया।
कमला . . . मेरी कामवाली बाई जो सालों से मेरे यहाँ काम कर रही थी। उसका पति आए दिन शराब पीकर उस पर हाथ उठाता और गाली-गलौच करता और वह बेचारी मन मसोसकर और बड़बड़ा कर रह जाती। मैंने कई बार समझाया कि अगर ना माने तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराओ उसकी, पर हमारे भारतीय समाज में स्त्री आज भी पति के विरुद्ध जाने का साहस नहीं जुटा पाती। और वह बेचारी तो अनपढ़ और ग़रीब औरत थी।
उसे परेशान देखकर अनायास ही विचार में डूब गई मैं। मेरी चचेरी बहन जो बहुत ही शिक्षित और कॉलेज में प्रोफ़ेसर है, उसको उसके पति ने शादी के 10 साल बाद छोड़ दिया और दूसरी शादी रचा ली और वह शिक्षित होकर भी कुछ ना कर सकी। आख़िर करती तो क्या जब पति के मन में ही उसके लिए प्यार और समर्पण नहीं रहा तो उस रिश्ते को बचाकर वह क्या प्राप्त कर लेती? इसलिए उसने अलग हो जाना ही ठीक समझा।
आज कमला और अपनी चचेरी बहन की स्थिति को तुलनात्मक रूप से देखती हूँ तो दोनों में ज़्यादा अंतर नहीं नज़र आता। शिक्षित हो या अशिक्षित, पुरुष की मानसिकता पर निर्भर है कि स्त्री उसके साथ ख़ुश रह सकती है या नहीं।
वहीं दूसरी ओर मैं अपने जीवन साथी के साथ अपने रिश्ते को देखती हूँ तो गर्व करने को जी चाहता है। नाज़ होता है अपनी क़िस्मत पर कि क्या किसी का जीवन साथी इतना समझदार, समर्पित और प्यार करने वाला हो सकता है . . . वह भी एक पुरुष होकर। पुरुष वाला दंभ छू भी नहीं गया उनको।
शादी के 20 वर्ष में अनेकों उतार-चढ़ाव देखे पर फिर भी एक दूसरे के प्रति आदर-सम्मान और एक दूसरे को समझने में कहीं कोई कमी नहीं आई। पति के रूप में न केवल एक प्यार करने वाला इंसान मिला बल्कि एक बहुत ही अच्छा दोस्त, एक हमदम, एक मार्गदर्शक और एक बहुत ही अच्छा इंसान जीवन साथी के रूप में पाया। एक ऐसा व्यक्ति जिसका सोचने का नज़रिया, स्त्री को देखने का नज़रिया, उसकी भावनाओं को समझने और महसूस करने का तरीक़ा अन्य पुरुषों से बिल्कुल अलग है। जो स्त्री का पूरा सम्मान करता है उसको समझता है। उसके आराम, उसके सुख-दुख का पूरा ध्यान रखता है। हर क्षण, हर पल उसकी भावनाओं को समझने का प्रयास करता है। कभी भूल से भी मेरी भावनाओं को आहत नहीं किया जिसने।
मुझे पति के रूप में बहुत ही अच्छा दोस्त मिला है जिनके साथ मैं जीवन के सारे उतार-चढ़ाव, सुख-दुख का सामना हँसते-हँसते कर सकती हूँ।
इनको देखती हूँ तो ऐसा लगता है कि हमारे पुरुष प्रधान समाज में ऐसे ही पुरुषों से नारी का गौरव उसकी अस्मिता सुरक्षित और क़ायम है। ऐसा पति पाकर स्त्री ख़ुद को गौरवान्वित महसूस करती है कि वह भी महत्त्वपूर्ण है . . . उसकी भी एक महत्त्वपूर्ण जगह है उसके परिवार में, उसके पति के जीवन में। तो क्यूँ नहीं सोचते इस नज़रिए से वह पुरुष जो स्त्री को मात्र इक वस्तु समझते हैं, उसके अस्तित्व को नकारते हैं और खोखला दंभ भरते हैं अपने पुरुष होने का।
काश हर पुरुष स्त्री के मन को समझ पाए, उसे एहसास दिला पाए कि उसकी क्या अहमियत है पुरुष के जीवन में। वह जीवनसंगिनी है, अर्द्धांगिनी है और पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज में चल सकती है। उसके बिना पुरुष अधूरा है और वह उसकी शक्ति है . . . और इसी के साथ ही “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता” वाली कहावत वास्तव में वास्तव में चरितार्थ हो जाए।
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