अनोखी भाषा
दीपमाला
अनेकों भाषाएँ हैं जहान में बोलने के लिए
किन्तु एक भाषा जो सबके लिए एक है।
जिसे सब समझते हैं और उतरती है सीधे दिल में
वो है निश्छल प्रेम की भाषा,
जो होती है—
आँसुओं के रूप में।
जो गिरती है झर-झर आँखों से और
बयाँ कर देती है सब हाल दिल का
बिना बोले ही कह जाती है सब कुछ
जो हम कहना चाहते है किसी से।
जैसे बच्चे को देखकर ही
माँ समझ जाती है कि भूख लगी है उसको
या आलिंगन चाहता है वो अपनी माँ का।
इक सच्चा दोस्त और मनमीत
समझ लेता है दूजे के आँसुओं की भाषा
और रख लेता है अपना हाथ
उसके कंधे पर चुपके से धैर्य देते हुए।
समझ लेती है इक जवान की पत्नी
जब वापस लौटता है उसका पति
देश की सीमाओं पर . .
सहेज लेती है उस प्रेम भरे स्पर्श को
मन की गहराई में।
ये आँसुओं की भाषा कहीं ऊपर है
शब्दों की भाषा से!
जो केवल
प्रेम और हार्दिक समर्पण से ही
समझी जा सकती है!
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