तुम्हारा प्यार
आशा बर्मनगगन सा निस्सीम,
धरा सा विस्तीर्ण
अनल सा दाहक,
अनिल सा वाहक,
सागर सा विस्तार,
तुम्हारा प्यार!
विश्व में देश
देश में नगर
नगर के किसी परिवेश
में, मैं अकिंचन!
अपनी लघुता से विश्वस्त,
तुम्हारी महत्ता से आश्वस्त,
निज सीमाओं में आबद्ध
मैं हूँ प्रसन्नवदन!
परस्पर हम प्रतिश्रुत,
पल - पल बढ़ता प्यार,
शब्दों पर नहीं आश्रित,
भावों को भावों से राह!
तुम्हारी महिमा का आभास,
पाकर मैंने अनायास,
दिया सौंप सारा अपनापन
चिन्तारहित मेरा मन!