ताल ठोंकता अमलतास
रामदयाल रोहजसूर्य की क्रोधाग्नि में
सर, नदियों का जल जल रहा
मर रहे प्यासे हिरण
पत्थर भी परुष पिघल रहा
लू के थापों से मूर्छित
हारा खिन्न विपिन है खड़ा हुआ
पर ताल ठोंकता अमलतास
मल्ल सा दंगल में अड़ा हुआ
देख बड़ी बाधाओं को
यह सैनिक कब घबराता है
जितने ही संकट आते हैं
उतना ही खिलता जाता है
पीले वस्त्र पहन लिए
तपसी सा ध्यान लगाता है
मरुथल तपभूमि बनी हुई
जीवन का अलख जगाता है
पाग बाँध ली फूलों की
चंवरी पर सजकर आता है
मधुर इशारों से, दुल्हन
वर्षा को पास बुलाता है।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
- कहानी
- किशोर साहित्य आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-