गर्मी की चुड़ैल
रामदयाल रोहजविशाल दानव देह
तीखे लम्बे लू के नाख़ून
खुले लम्बे लम्बे बाल
ख़ून से सने हुए होठ
गर्मी की चुड़ैल घूम रही है
चारों तरफ़
अपना तांडव मचाती
सम्पूर्ण जलाशयों को पीकर
फेंक रही है भयंकर आग
अपने भोंडे मुख से
धोबे भर भर कर पी रही है
जीवों जन्तुओं का रक्त
हारे सिपाही दरख़्त सह रहे हैं
चुपचाप भीषण प्रहार
छाया सिकुड़कर चली गई है
होशियार तनों की छाया में
भयभीत लोग छुप गये हैं
दरवाज़े उढ़काकर
घर घर में बैठा लिए है कूलर तांत्रिक
मंत्रों से हो रहे है
बचाव के उपाय
लगातार किया जा रहा है
अभिमंत्रित जल का छिड़काव
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
- कहानी
- किशोर साहित्य आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-