एक परीक्षा और
रामदयाल रोहजभूपालसिंह एक ग़रीब किसान था लेकिन गाँव में अच्छा मान-सम्मान था। चार बेटियाँ थी जो बालपन में ही ससुराल वासिनी हो गई। एक बेटा था नाम था-जतिन।
जतिन पढ़ाई में बड़ा होशियार था। पूरी कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। एक दिन गजानन्द गुरुजी मिल गये और बोले, "भूपालसिंहजी . . . आपका बेटा एक दिन आपका . . . और आपके गाँव का नाम रोशन करेगा। बस . . . आप इसकी पढ़ाई के ब्रेक मत लगाना। वैसे तो यह सभी विषयों में होशियार है लेकिन गणित में तो आर्यभट्ट ही समझो। हमेशा दस बट्टा दस ही लाता है।”
भूपालसिंह मन ही मन प्रसन्न हुए तथा अपने बेटे पर गर्व करते हुए घर आए तथा पत्नी से बोले, “श्रीमती जी! आपके बेटे ने आज मेरी नाक ऊँची कर दी है। इसे दूध और चूरमा धपाकर खिलाया करो। गजानन्द जी के मुख से इसकी प्रशंसा सुनकर मेरा तो सीना दो गज़ चौड़ा हो गया है।”
श्रीमती जी मुस्कुराती हुई रसोई से आई और चाय की बाटी देते हुए बोली, “तब तो आपको बिन माँगे ही तुरंत गर्मागर्म चाय मिलनी चाहिए।”
इतने में जतिन दौड़ा दौड़ा स्कूल से आया।
“पापा देखो जीके पेपर में मैं पूरे स्कूल में प्रथम आया हूँ। सौ में से बानवे प्रश्न सही हुए है।”
भूपालसिंह बोले, “सच में!” भूपालसिंह को इतनी ख़ुशी हुई कि आँखों में आँसू छलक आए। जतिन के सिर पर हाथ फेरते हुए श्रीमती से बोले, “देखा! मेरे बहादुर शेर ने सबको पछाड़ दिया। तुम देखना! एक दिन यह बड़ा अफ़सर बनेगा और हमारी ग़रीबी ऐसे भागेगी जैसे रवि को देखकर रात।”
भूपालसिंह रात दिन कमाता। ख़ुद भूखा सो जाता पर जतिन की पढ़ाई पर जी खोलकर पैसा लगाता।
जतिन ने पचहतर प्रतिशत अंकों से बारहवीं उत्तीर्ण कर कॉलेज में दाख़िला लिया और बीए के अंतिम वर्ष में उसका चयन बीएड में हो गया। जतिन बीएड का पेपर पास करने वाला गाँव का पहला लड़का था। गाँव के हर इंसान की ज़बान पर एक ही बात थी—भूपाल के तो भाग ही खुल गए। कोई कहता—यार इस लड़के ने तो कमाल ही कर दिया। सलेक्शन हुआ है वो भी जनरल में।
भूपालसिंह ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बाँटी। पाँच सात दिन बाद जतिन ने कहा, “पापा! काउंसलिंग के लिए बीस हज़ार रूपए जमा करवाने होंगे।”
भूपालसिंह बोले, “बीस हज़ार की क्या बात है। मैं आज ही पत्तू चौधरी से ब्याज पर उधार ले आऊँगा। कल जमा करवा देना।”
उधार-पुधार से बीएड पूरी हो गई और जतिन गाँव लौट आया।
एक दिन जतिन को उसके दोस्त विपिन ने फ़ोन किया। उससे बात करते-करते, “चलेंगे यार पर पापा से पूछ लूँ।” वाक्य के साथ फ़ोन काटकर मुस्कुराता आकर बोला, “पापा! सरकार ने तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती के आवेदन माँगे हैं पाँच छ महीने बाद परीक्षा होगी। विपिन कोचिंग के लिए जयपुर जा रहा है। आप कहें तो . . .”
भूपालसिंह ने पूछा, “बेटा! कोचिंग का कितना ख़र्चा आ जाएगा?”
जतिन बोला, “फ़ीस, रूम किराया, किताबें और खाना वाना करके साठ सत्तर हज़ार रुपए तो हो ही जाएगा।”
“साठ सत्तर हज़ार . . .!” सुनते ही पिता के पैरों तले की ज़मीन खिसक गई।
किसी तरह ख़ुद को सँभाल कर बोले-अरे भई क्यूँ चिंता करता है। तुम्हारी पढ़ाई के रास्ते में एक भी रोड़ा नहीं आने दूँगा। आगे तो ईश्वर है। इतना कहकर वे तुरंत घर से निकल गए।
जतिन तो शाम खाना खाकर सो गया लेकिन भूपालसिंह देर रात को घर लौटे और चौकी पर पड़े मुढे पर गुमसुम बैठे थे। पत्नी ने कहा, “रोटी जीम लो जी!”
भूपालसिंह बोला, “मुझे भूख नहीं हैं। तुम खा लो।”
“रात के नौ बज गए अभी तक आप को भूख नहीं लगी। तबीयत तो ठीक है?”
“तबीयत तो ठीक है पर . . .”
“तो किस बात की चिंता सता रही है।”
“चिंता तो है पर बताकर तुम्हें और चिंतित करने से क्या फ़ायदा?”
“एक दूसरे को बतलाने से समस्या का हल निकल आता है।”
“अरे भई! क्या बताऊँ? लालू सेठ के पास गया था कुछ उधार पैसे के लिए। पर वह तो फंकी भी नहीं लगने देता। जतिन की कोचिंग के लिए सत्तर हज़ार रुपए की ज़रूरत है। क़र्ज़ पहले से ही इतना है जितने सिर पर बाल ही नहीं। अब तो कोई दस रुपए भी उधार नहीं देता।”
“बस! इतनी सी बात। और इतनी चिंता। इतने पैसे आसानी से बना सकते हैं हम।”
“पर किस चीज़ से। मेरे समझ में तो कुछ नहीं आता।”
“मेरी टूम पड़ी है ना। आप सुबह टूम बेचकर जतिन को पढ़ाई के लिए भेज दो।”
“नहीं नहीं तुम्हारी टूम नहीं बेचेंगे। औरत की सबसे प्यारी वस्तु टूम ही होती है। ऐसा ग़लत काम मैं नहीं करूँगा।”
“बेटे की क़ामयाबी से बढ़कर कोई चीज़ नहीं होती। जब जतिन नौकरी की लग जाएगी तो दूनी बनवा देना।”
“आप कहती है तो . . . पर मेरा मन . . .”
“इसमें दिक़्क़त क्या है? अपनी क़ामयाबी के लिए ही तो कर रहे हैं। चलो अब उठो! रोटी जीमो!”
सुबह ही कल्याणी ने अपनी सारी टूम उतार कर भूपालसिंह को दे दी और जतिन को जयपुर भेज दिया गया।
जतिन के मन में एक बात हमेशा गड़ती रहती थी कि नौकरी के लिए माँ-पापा ने सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। उन्होनें जो सपने सँजो रखे है उन्हेंं हर हाल में पूरे करूँगा।
इसलिए वह रात दिन कड़ी मेहनत करता। परीक्षा की तिथि घोषित हुई लेकिन कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया। रोज़ाना हज़ारों लाशें अस्पतालों से जाने लगी। शहर, सड़कें सब वीरान। यदि कोई आदमी किसी काम के लिए घर से निकल भी जाता तो पुलिस की लाठियों से हाथ पैर तुड़वाकर ही घर लौटता। मंदिर, स्कूल, कॉलेज और कोचिंग, दुकानें सब भभाखा मार रहे थे। खुले थे तो सिर्फ़ अस्पताल। सेठ नाई कारीगर मज़दूर सब का काम ठप्प हो गया। ग़रीब तो परेशान थे ही पैसे वाले भी सामान न मिलने से परेशान थे।
जतिन के पास राशन तो था फिर भी एक ही वक़्त भोजन बनाता था ताकि पढ़ाई पर अधिक से अधिक ध्यान दे सके। जतिन का दोस्त नौ बजते ही खर्राटे बजाने लगता परन्तु जतिन कड़ाके की सरदी में भी आधी रात तक पढ़ता रहता था। पिता फ़ोन कर पढ़ाई के बारें में पूछते तो वह कहता—आपके आशीर्वाद से निश्चित ही सफल हो जाऊँगा। बस जल्दी से परीक्षा हो जाए। जतिन की तैयारी बहुत अच्छी थी। धीरे धीरे कोरोना का क़हर कुछ कम हुआ तो सरकार ने तुरन्त परीक्षा करवा दी। जतिन परीक्षा देकर घर आया तो बहुत ही ख़ुश था। कल्याणी ने आते ही उसे गले लगाया। मेरा लाल जीतकर आया है और जीते भी क्यों न। जिस परीक्षा हुई तब से रोज़ाना नंगे पाँव भगवान के मंदिर जाती हूँ और इसकी क़ामयाबी के लिए प्रार्थना करती हूँ। भोपालसिंह ने कहा, “अरे भई! ये समझो कि भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली तभी तो इसका पेपर इतना अच्छा हुआ है।”
कल्याणी बोली, “जतिन की नौकरी लगने के बाद मुझे तो एक अच्छी सी मोहर और पाजेबों की जोड़ी बनवा देना।” जतिन बीच में ही बोल पड़ा, “मम्मी! तब तो पापा आपको सोने से पीली कर देंगे।” सभी खिलखिलाकर हँसने लगे।
कुछ ही दिनों के बाद जतिन का रिज़ल्ट आया और छियासी प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। घर में उत्सव का सा माहौल बन गया। भूपालसिंह ने रिज़ल्ट का समाचार सुनते ही पाँच किलो कणक ताऊ की दुकान पर बेचकर तुरंत मिठाई लाया और कल्याणी ने जतिन का मुँह मीठा करवाया।
भूपालसिंह प्रसन्नचित मन से कहने लगा, “भगवान ने हमारी ख़ूब परीक्षा ली आख़िर फल दे ही दिया।”
गाँव के लोग भूपालसिंह को बधाई देने लगे।
दूसरे ही दिन अख़बार में समाचार छपा कि इस परीक्षा में बहुत बड़ी धाँधली हुई है। सरकार ने जब जाँच करवाई तो बड़े-बड़े अफ़सर और नेता भी पेपर लीक प्रकरण में दोषी पाए गए। उन सब को बरख़ास्त किया गया परन्तु इतने से काम नहीं चला। इस भर्ती परीक्षा को रद्द करवाने के लिए ख़ूब शोर-शराबा हुआ।
चारों तरफ़ से दबावों से घिरी सरकार ने परीक्षा को रद्द कर दिया साथ ही कहा कि इस फ़ैसले से हम ख़ुश नहीं है। युवाओं के हित को ध्यान में रखते हुए इस परीक्षा का आयोजन फिर से किया जाएगा।
जैसे ही यह समाचार जतिन व उसके पिता ने सुना तो जैसे उन पर पहाड़ टूट पड़ा हो। घर में कुछ दिनों के लिए जो ख़ुशी आई थी अब निराशा और सन्नाटे में बदल गई।
भूपालसिंह दिनों-दिन बीमार पड़ते गए। उन्हें पूरे दिन बुखार रहने लगा। जतिन भी घर की चिंता और लोगों के ताने सुन-सुन कर तनाव में रहने लगा और खाना–पीना ही छोड़ दिया। बेचारी कल्याणी कभी दलिया बनाकर देती कभी बाजरे की रबड़ी लेकिन बाप-बेटे को कुछ अच्छा लगता ही नहीं। एक दिन भूपालसिंह तिबारी में तेज़ बुखार में पड़े थे। उसकी चारपाई के सीध में ही म्याली थी जिस पर जतिन की कुछ किताबें व पुराने अख़बार रखे हुए थे। म्याली पर दो चिड़ियाँ चीं चीं करती हुई लड़ रही थी और एक अख़बार भूपालसिंह की छाती पर आ गिरा। उसे हाथ में लेकर भूपालसिंह एक तरफ़ रखना चाहते थे लेकिन रंगीन पृष्ट को देखकर उनके हाथ ऊपर ही रुक गए। यह साहित्य-सागर पत्रिका थी जिसके मुख्य पृष्ठ पर हरिवंशराय बच्चन की यह कविता भूपालसिंह पढ़ने लगे:
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
भूपालसिंह के शरीर को जैसे कोई शक्ति मिल गई हो। हिम्मत करके चारपाई से उठे। आहिस्ता-आहिस्ता आँगन में आकर कल्याणी से बोले, “आज दलिया बनाया है क्या?”
कल्याणी बोली, “हाँ बनाया है। अभी लाती हूँ।”
वहाँ से वे जतिन के पास आए जो बाखल में चादर ओढ़कर पड़ा था। चादर को उसके मुँह से हटाकर भूपालसिंह ने कहा, “बेटा! उठो! कुछ दलिया खिचड़ी खा लो। ऐसे हार मान लेने से कौन सहायक होगा? भगवान भी नहीं।”
जतिन ने अपने पिता की ओर देखा तो उसकी आँखों में पानी आ गया और बोला, “पापा मुझे भूख नहीं है।”
“नहीं बेटा! हिम्मत कर! एक परीक्षा और!”
कठिन शब्दार्थ:
धपाकर=पेटभर; बाटी=कटोरी; मुड्ढे=सरकँडे से बना बैठने का गोल स्टूल; जीमना=भोजन करना; फंकी न लगना=बात भी न सुनना; टूम=गहने; दूनूनी=दुगुनी; गड़ती=चुभती; भभाखे मारना=सुनसान हो जाना; कणक=गेहूँ; तिबारी=तीन दरवाज़ों का मकान; म्याली=कच्चे मकानों की दीवारों पर खूँटियों के सहारे गोबर मिट्टी से बनाई गई स्लैब; बाखल=घर में मकानों के आगे खुली ख़ाली जगह।
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