अनमोल ओस के मोती

15-01-2023

अनमोल ओस के मोती

रामदयाल रोहज (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

तरु पल्लव सा झर गया साल
प्रातः रश्मि की पहन माल
धर स्वर्ण मुकुट द्युतिमय भाल
सुख बाँट रहा भर थाल थाल। 
विरहिनी रजनी बरसाती है
आँखों से इकलौती
अनमोल ओस के मोती। 
 
सरसों का सँवरा अंग अंग
नम पीत वसन पर तंग तंग
बढ़ रहे कुसुम कलि संग संग
कर रहे ध्यान अलि भंग भंग
बालों में ख़ूब सजाती है
दूर्वादल सोती सोती
अनमोल ओस के मोती। 
 
गेहूँ पल्लव से फिसल फिसल
छिप रहे धरा में रूप बदल
अपलक चकित बगुला पागल
लघु चटुल जीव या कतरा जल! 
अब फिर से ध्यान लगाता है
भोजन की करे मनौती
अनमोल ओस के मोती। 
 
नीहार-छाछकण रहा उछल
मक्खन सा पल पल रहा मचल
कर अनिल-नेतरा थाम युगल
पर्वत-पीढ़े पर बैठ कुशल
धरती का दीर्घ बिलौना है
प्रकृति दही बिलौती
अनमोल ओस के मोती। 
 
नेतरा=मथनी घुमाने की रस्सी (आंचलिक शब्द)

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