स्वर्ण टीले
रामदयाल रोहजजब सूरज ने आँखें खोली
धरती बना रही रंगोली
मधुर मधुर गौरेया बोली
विचर रही मृगों की टोली
अहा! इधर पीले चमकीले
लगे मनोहर स्वर्ण टीले
धुले तुहिन से थोड़े गीले
देख रवि हो गए रंगीले
अंबर से यहाँ परियाँ आतीं
कनक देह आँखें मदमातीं
सुबह शाम को साथ नचातीं
भ्रमण कर वापिस उड़ जातीं
इन्द्र तब बरसाता फूल
माथे, शीश लगाता धूल
स्वर्ग को भी जाता भूल
घूमे कालिका - त्रिशूल
चरवाहों के मीठे गीत
घंटियों के टुन टुन संगीत
प्रकृति से सच्ची प्रीत
कथा सुनाता रहा अतीत
मस्त टहलती छिपकलियाँ
प्रसून बनाती छिप कलियाँ
जांटी पर ताँबे की फलियाँ
भर रही गोंद डलियाँ डलिया
पग पग पर नागमणि मिलती
रजनी को भी रोशन करती
सर्पों की जीभ शतत् चलती
ले नीलकंठ से विष फलती
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