पर्वत
रामदयाल रोहजपर्वत हैं पृथ्वी के अमोल अलंकार
बादल धोते रहते बरसाते हैं प्यार
स्वर्णिम दामिनी से पल-पल निखरते
सरिता का रीता प्याला पावन पानी से भरते
सोते - सितार से सुमधुर संगीत सुनाते
शस्य श्यामल वसुंधरा के छंद गुनगुनाते
स्वस्थ समीर से साँसों में संजीवनी सी भरते
मन की मलीनता चुटकी में हरते
कंधों पर बैठे चाँद तारे मुस्कुराते
रजनी भर जगकर करते दिल की बातें
सूरज के वाजी इसकी ओट में सुस्ताते
शांति यहाँ वानर लंगूर भी पाते
पंछी पेड़ों पर स्वशासन चलाते
अपनी पैनी चंचु का जादू दिखलाते
इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से सज्जित
रमने स्वर्ग से सुर आते रहते नित
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
- कहानी
- किशोर साहित्य आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-