धनुष गगन में टाँग दिया
रामदयाल रोहजभादों ने विश्राम किया
बूँदों के बाण चलाकर
मार चुकी सूखे की सेना
चपला - असि चलाकर
घन-तरकश अब रिक्त हुआ
है धनुष गगन में टाँग दिया
अब भाई आसोज पधारे
आते ही कुछ काम किया
अनगिनती की संख्या में
निदाघ-बाज़ लेकर आया
देख हरित चिड़ियाओं का
डर के मारे मन घबराया
दिन आये है श्राद्धों के
पितरों को भोग लगाया है
भोजन छत पर छोड़ा है
पर कौओं ने पहुँचाया है
1 टिप्पणियाँ
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बहुत ही शानदार रचना
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