छोटा सा गाँव हमारा
रामदयाल रोहजस्वर्ग से भी सुन्दर है
छोटा सा गाँव हमारा
राकेश रवि-दीपक जलते
ओझल होता अँधियारा
मुँडेरों पर मोर सवेरे
आकर करतब दिखाते
दादी दाना डाल रही
बच्चों को बहुत सुहाते
आसमान सा खुला हुआ
खेतों तक पाँव पसारा
मिट्टी के पन्नों में लिखता
क़िस्मत का लेखन सारा
यहाँ दिलों में निश्छलता
निज महल बनाकर बसती है
रग-रग में यहाँ नर नारी के
फागुन जैसी मस्ती है
रोज़ सवेरे ने बना
रंगोंली से रूप सँवारा
रजनी ने डिब्बा खोल दिया
हीरों सा चमके तारा
पनघट के हैं मधुर स्वर
रहटों के गीत निराले हैं
संशय की चादर को दिल से
दूर हटाने वाले हैं
जलाशीष तरु डाल रहे
खग बहा रहे रस धारा
सक्षम परकोटा टीलों का
मंगल मंडित है द्वारा