छोटा सा गाँव हमारा
रामदयाल रोहजस्वर्ग से भी सुन्दर है
छोटा सा गाँव हमारा
राकेश रवि-दीपक जलते
ओझल होता अँधियारा
मुँडेरों पर मोर सवेरे
आकर करतब दिखाते
दादी दाना डाल रही
बच्चों को बहुत सुहाते
आसमान सा खुला हुआ
खेतों तक पाँव पसारा
मिट्टी के पन्नों में लिखता
क़िस्मत का लेखन सारा
यहाँ दिलों में निश्छलता
निज महल बनाकर बसती है
रग-रग में यहाँ नर नारी के
फागुन जैसी मस्ती है
रोज़ सवेरे ने बना
रंगोंली से रूप सँवारा
रजनी ने डिब्बा खोल दिया
हीरों सा चमके तारा
पनघट के हैं मधुर स्वर
रहटों के गीत निराले हैं
संशय की चादर को दिल से
दूर हटाने वाले हैं
जलाशीष तरु डाल रहे
खग बहा रहे रस धारा
सक्षम परकोटा टीलों का
मंगल मंडित है द्वारा
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
- कहानी
- किशोर साहित्य आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-