हवन करता जेष्ठ
रामदयाल रोहजबनी तपोभूमि वसुधा
है मरुथल कुंड हवन
पूर्ण विधि विधानों से
करता है जेष्ठ हवन
मंत्रों से अग्नि प्रज्वलित
लू - लपटें उठीं गगन
आहुति देता बार बार
समिधा जीवों के तन
निर्जल उपवास किया धारण
सम्मिलित है मरु कानन
कमज़ोर देह, मूँदे लोचन
हैं सूख रहे आनन
बिना किसी व्यवधान के
जब हुआ हवन सम्पन्न
ख़ुशबू जा पहुँची स्वर्ग में
बैठे चिंतित सुर गण
चढ़कर इन्द्र घन यान में
आ पहुँच गया मरु वन
तपसी जन पर प्रसन्न होकर
बरसाए मेघ सुमन
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अग्निदेही
- अचला सुन्दरी
- अनमोल ओस के मोती
- कार्तिक पूर्णिमा
- गर्मी की चुड़ैल
- चाँद का जादू
- छोटा सा गाँव हमारा
- तलवार थाम बादल आया
- ताल ठोंकता अमलतास
- थार का सैनिक
- धनुष गगन में टाँग दिया
- नाचे बिजली गाते घन
- नीली छतरी वाली
- पर्वत
- पर्वत की ज़ुबानी
- पाँच बज गये
- पानी
- पैर व चप्पलें
- प्यासी धरती प्यासे लोग
- फूलों की गाड़ी
- बरसात के देवता
- बरसात के बाद
- मरुस्थल में वसंत
- रोहिड़ा के फूल
- वसंत
- सच्चा साधक
- साहित्य
- स्वर्ण टीले
- हवन करता जेष्ठ
- हिम्मत की क़ीमत
- हे! नववर्ष
- कहानी
- किशोर साहित्य आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-