प्यार भरा दिल
अनीता श्रीवास्तव“माँ . . .“
“हाँ।“
“जब मैं छोटी थी, तुम मुझे कहानी सुनाती थी।”
“हाँ, हाँ याद है। तुम इतनी ज़िद्दी जो थी। अगर कह दिया कहानी सुननी है तो सुननी ही है।”
“आज एक कहानी सुनाओ न . . . प्लीज़!“
“अब तुम बच्ची नहीं हो।”
“पर मैं ज़िद्दी तो अभी भी हूँ। कहानी सुनाओ न!“
" . . . . . . . . . . "
“कहानी . . . कहानी . . . कहानी . . .“
“अच्छा बाबा ठीक है। लेकिन मैं तो सारी कहानियाँ दिमाग़ से निकाल चुकी हूँ . . . अब ज़रूरत सी नहीं लगती।”
“फिर भी कुछ तो होगा। कुछ भी सुनाओ . . . प्लीज़ . . . मेरी अच्छी मम्मा!”
“एक लड़की थी।“
“मेरी तरह?”
“नहीं मेरी तरह!“
“हें?“
“मैं भी तो 'भूतपूर्व लड़की' हूँ! हा.. हा.. हा! “
“चलो माना। अब, आगे।”
“वो बात बेबात हँसती। यूँ ही गाती– गुनगुनाती। उसका दिल प्यार से भरा था।“
“ओ वाओ.. ब्यूटीफुल स्टोरी .. प्यार से भरा दिल..!“
“हाँ , इतना कि छलक-छलक जाता था।”
“वो कैसे?“
“जब भी वो कोई फ़िल्म देखती तो उसके हीरो को दिल दे बैठती। फिर कोई और फ़िल्म, कोई और हीरो। कोई कहानी पढ़ती तो उसका नायक उसके सपनों में आने लगता। फिर कोई और कहानी कोई और नायक।”
“ओह!”
“उसकी रंगत देख कर उसकी सहेलियों ने कहा कि उसे किसी से प्यार हो गया है।”
“हुआ तो था ही!“
“लड़की सोचने लगी प्यार हुआ-सा लगता तो है। लोग ठीक ही समझे हैं। मगर सवाल ये है कि किससे!“
“बेचारी! प्यार हुआ और समझ भी नहीं पा रही किससे हुआ? च्च च्च!”
“मगर तभी एक और घटना घटी लड़की की शादी की बात चली।”
“बहुत रोई होगी। प्यार से भरा दिल बेचारी का, टूट गया होगा।”
“नहीं। क्योंकि अब तक उसे पता नहीं था कि आख़िर प्यार हुआ किससे है सो उसने जल्दी ही प्रस्तावित लड़के में अपना हीरो खोज लेने की ठानी।”
“इंटरेस्टिंग . . .“
“शादी हो गई। लड़की अपने नए-नवेले पति के साथ रहने आ गई।”
“आना ही था!“
“क्योंकि लड़की का दिल प्यार से भरा था। उदास होना वो जानती ही न थी।”
“सच्ची?“
“उसने अपनी देखी हुई फ़िल्मों और पढ़ी हुई कहानियों के नायकों को एक- एक कर अपने नए बने जीवन के नायक से प्रतिस्थापित किया।”
“ए...ए... एक मिनट। प्रति. . . क्या?”
“अपने पति को हीरो या नायक की जगह फ़िट किया।“
“ओ . . . फिर?“
“इस काम में उसे वर्षों लग गए। लेकिन वो किसी भी नायक की जगह उस व्यक्ति को नहीं बिठा पाई। हर जगह कोई न कोई विसंगति बन पड़ती और उसे वहाँ से हटाना पड़ता।”
“बेचारी का प्यार से भरा दिल!“
“हाँ, दिल तो अब भी वैसा ही था। मगर उसने मान लिया था कि उसकी अपनी ज़िंदगी की कहानी बिना नायक की ही है।”
“नहीं माँ कहानी बिना नायक की नहीं है। कहानी में नायक मौजूद है, मगर कुछ कहानियाँ मुख्य पात्र पर केंद्रित होती हैं।“
" . . . . . . . . . . "
“जिसका दिल प्यार से भरा है, नायक-नायिका के लफड़े में है ही नहीं। वो ख़ुद अपनी ज़िंदगी की कहानी का केंद्रीय पात्र है। है न! उधर मुँह क्यों फेर लिया? मेरी तरफ़ देखो न माँ।”
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