माँ और मेरा बचपन
अनीता श्रीवास्तवबड़ी-बड़ी आँखों वाली थी
सुंदर मुखड़े वाली थी
वो भी क्या दिन थे
जब मेरी माँ परियों सी प्यारी थी।
झूल-झूल जाती बाँहों पर
चुम्बन पा जाती गालों पर
वो भी क्या दिन थे जब
मैं कोंपल थी औ' माँ डाली थी।
मैं थी उसका हीरा मोती
मुझे संग ले कर वो सोती
वो भी क्या दिन थे जब
वो रानी, मैं राजकुमारी थी।
उँगली पकड़-पकड़ कर चली
उसका सपना बन कर पली
वो भी क्या दिन थे जब
माँ की हर इक बात निराली थी।
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