आपसी समझ बनाम आभासी समझ

15-01-2023

आपसी समझ बनाम आभासी समझ

अनीता श्रीवास्तव (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

शारदा देख रही है अनिर्णय में फँसी हुई पिंकी को। क्या वह पिंकी की मदद करे? अगर हाँ तो कैसे? पिछले अनुभव की स्मृतियाँ उसे डरा रही हैं। वह स्वयं भी तो अनिर्णय में है। ऐसी स्थिति में तो अच्छे-अच्छे प्रौढ़ विचलित हो जाते हैं फिर यह तो भावुक स्वभाव की कोमल सी लड़की है। अभी उसके जीवन का यह नया अध्याय खुला ही तो है। 

उसकी पापा सुधाकर से खुल कर बात होती है। मानने न मानने के पहले आवश्यक विमर्श भी होता है। वे दोनों आज के समय के पिता-पुत्री हैं जो एक हद तक मित्र जैसे भी हैं। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पिंकी ने सरकारी सेवा का मन बनाया। कम्पीटीशन कठिन है यह देख कर माँ ने कई दिनों की मशक़्क़त के बाद दोनों को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि परीक्षा की तैयारी भी होती रहेगी और इस बीच अच्छे लड़के की तलाश भी होती रहेगी। पापा ने शादी डॉट कॉम पर रजिस्ट्रेशन करा लिया। कुछ समूह भी थे जो वैवाहिकी के लिए ही बनाए गए थे। इनमें मम्मी-पापा में से कोई एक ऐड हो गया। जल्द ही पिंकी को एक लड़के का फोटो पसंद आ गया। पापा बहुत ख़ुश हुए और ख़ुशी-ख़ुशी लड़के के पिता, सुशांत कुमार वर्मा को फोन किया। 

वह एक सम्पन्न व्यवसायी परिवार था। बाप-बेटे दोनों मिल कर व्यसाय चलाते थे। फोन पर शुरूआती बात-चीत में दोनों पिता एक-दूसरे की सज्जनता से प्रभावित हुए। लड़के के पिता ने पिंकी के पापा को घर आने का न्यौता दे डाला। इसके पीछे उनका उद्देश्य आगंतुक को अपने घर और व्यवसास की ज़मीनी हक़ीक़त से परिचित करवाना था। भोजन करते हुए वर्मा जी ने स्पष्ट किया, “सारा कारोबार बड़ा बेटा ही देखता है। छोटे को इसमें रुचि नहीं है।”

शायद वे लड़की के पिता को आश्वस्त करना चाहते थे कि इस व्यवसाय को दो में नहीं बाँटा जाएगा। पिंकी के पापा का मन प्रफुल्लित हो गया। वे लड़के से भी मिले। दोनों में बातें हुईं और फिर चलते-चलते लड़की का नम्बर माँ के कहने पर दे दिया गया। 

पिंकी इस सबसे अनजान नहीं थी। रात सोने से पहले उसने अपना वॉट्सेप् चेक किया तो किसी अननोन नम्बर से ‘हाय’ किया गया था। नम्बर ऐड किया तो डीपी में फोटो दिखाई दी। हाँ यह तो वही लड़का था—नमित। पिंकी ने रिप्लाई किया—हाय . . . 

—आप कैसी हो? 

—फ़ाइन। प्रश्न की तरह उत्तर भी शॉर्ट था। 

—अंकल से मिल कर अच्छा लगा। 

इसके बाद का क्रम पसंद के रंग, फ़िल्म, हॉबी से होते हुए कैरियर तक आगे बढ़ा। धीरे-धीरे बातचीत उनकी दिनचर्या का अंग बन गई। इस उम्र में जितने मुद्दे होते हैं उन सब पर बातें होतीं। कभी-कभी वीडियो कॉल भी हो जाता। पिंकी सुबह देखती तो गुडमॉर्निंग मैसेज होता। फिर दिन भर की हर छोटी-बड़ी बात . . . ब्रेक फ़ास्ट हुआ, आज क्या खाया, ऑर्डर कर दूँ, वग़ैरह। पिंकी, लड़के की जिस बात से प्रभावित होती वह घर में सबको बताती। उसने बड़े गर्व से पापा को बताया कि उसने यह सुनिश्चित कर लिया है कि नमित किसी तरह के नशे का शौक़ीन नहीं है। न शराब, न ही स्मोकिंग। 

पिंकी की माँ शारदा देख रही थी कि वह सारा दिन सिर झुकाए चैट में लगी रहती है। शारदा को महसूस होता जैसे घर में एक अनजान शख़्स मौजूद है। बेटी पिंकी के इर्द-गिर्द उसे उसकी मौजूदगी और भी सघन दिखाई देती। हमेशा कम बोलने वाली पिंकी अब बात-बात पर चिड़िया सी चहकने लगी थी। उसका व्यक्तित्व महक उठा था। पिंकी ही नहीं वरन्‌ पूरा परिवार इस परिवर्तन की ज़द में था। घर में एक नूर उतर आया हो जैसे। यों शादी से पहले लड़का-लड़की का मिल कर रोज़ घंटों बातें करना एक परंपरावादी परिवार में आज भी सम्भव नहीं है किन्तु ये मुलाक़ातें तो आभासी थीं। मिल रहे थे वे . . . और नहीं भी। 

शारदा ने दबी ज़ुबान में विरोध दर्ज कराया था, “इनका देर तक चैटिंग करना मुझे अच्छा नहीं लगता।”

मगर सुधाकर ने समझाया, “ज़माना बदल गया है शारदा। तकनीक ने यह सुविधा दी है कि विवाह से पूर्व लड़का-लड़की बात कर सकें। मुझे इसमें कोई हर्ज नहीं दिखता। आख़िर बात करेंगे तो आपसी समझ विकसित होगी।”

सुधाकर के प्रगतिवादी तर्क के सामने शारदा ने शीघ्र ही घुटने टेक दिए। 

उस दिन बर्थडे था। पिंकी का स्टेटस देख कर नमित को पता चल गया। उसने हैप्पी बर्थडे के साथ आईफोन ऑर्डर करने का प्रस्ताव रखा। पिंकी का जवाब था, “शादी अभी तय नहीं हुई है।”

“हो जाएगी। बर्थडे गिफ़्ट तो बनता है न!”

“नहीं। इतना महँगा नहीं।”

“सस्ती चीज़ मैं देता नहीं,” नमित के जवाब में उसकी अमीरी भी बोल रही थी जिसे संतुलित करने के लिए उसने कई हँसते हुए इमोजी दाग़ दिए। 

चैट, कॉल और वीडियो कॉल करते एक माह बीत गया। नमित को विश्वास हो चला था उसकी पसंद पिंकी ही है। देखा नहीं तो क्या! बातचीत से इंसान का स्वभाव और व्यक्तित्व पता चल ही जाता है। आख़िर शक्ल देख कर अधिक क्या जान लेता है इंसान। शक्ल-सूरत तो वैसे भी धोखा है। लोग जैसे दिखते हैं वैसे होते नहीं। ख़ास कर, लड़कियाँ तो चेहरे पर न जाने मेकअप की कितनी परतें चढ़ा लेती हैं। ऐसे में साक्षात्‌ देखना कौन से सच का दर्शन करा पाएगा . . .। नमित के पास तर्कों की एक शृंखला थी जो उसे पिंकी के बारे में लगातार आश्वस्त कर रही थे। 

उस दिन बारिश हो रही थी। शारदा गीले कपड़े ही तार पर से समेट लाई मगर सोच रही थी कहाँ फैलाए। उसने पिंकी से कहा, “ये कपड़े कहीं फैला दो।”

कोई प्रतिक्रिया न पा कर उसने अपनी बात दोहराई मगर इस बार भी पिंकी पर कोई असर नहीं हुआ। वह दीन दुनिया से बेख़बर मोबाइल में लगी थी। यह देख शारदा को ग़ुस्सा आया मगर ख़ुद को सम्हालते हुए उसने सिर्फ़ इतना कहा कि, “उससे पूछो तुमसे मिलने कब आ रहा है।”

पिंकी ने इस बार गर्दन सीधी करके माँ की ओर देखा और मैसेज में माँ का ही प्रश्न टाइप करने लगी। 

‘मिलने का कोई प्रोग्राम नहीं। बस रात-दिन चैट में लगे हैं। मोबाइल पर ही हो जाएगी शादी . . .’ शारदा बुदबुदाते हुए कपड़े ले कर बाहर निकल गई। 

नाश्ते के समय सुधाकर के सामने भी शारदा ने वही बात रखी—वे लोग आएँ और आमने-सामने बैठ कर सारी बात हो जाए। सुधाकर ने वर्मा जी को फोन लगाया और आने का आग्रह किया। 

उस दिन घर में उत्सव-सा माहौल था। घर में अतिथि सत्कार की यथासम्भव उत्तम व्यवस्थाएँ की जा रही थी। सुधाकर सोच-सोच कर हर छोटी से छोटी बात शारदा को बता रहे थे। 

नमित ने भी अपना उत्साह नहीं छुपाया। शॉपिंग के वक़्त का फोटो। हेयर कटिंग करते हुए फोटो। घर से निकलते हुए सेल्फ़ी। आने वालों की जानकारी। सभी कुछ। पल-पल की जानकारी वॉट्सएप की गई। दोनों परिवार आश्वस्त थे कि रोका करना है। लड़की देखना तो औपचारिकता मात्र है। वह तो पहले ही पसंद की जा चुकी है। 

किन्तु जो हुआ, अप्रत्याशित था। लड़की और उसके परिवार के साथ लगभग दो घंटे बिताने के बाद लड़के समेत माँ, बुआ और चाची, सब बाहर चले गए और दो मिनिट में ही वापिस आ कर बैठ गए। इस बीच दोनों पिताओं में विवाह की योजना बनती रही। जाने से पहले लड़के के पिता ने फोटो खींचने को कहा। जिसमें चतुराई से नमित और उसके माता, पिता को छोड़ बाक़ी सब शामिल हुए। तीनों का फ़्रेम से बाहर होना इस बात का संकेत था कि वे लड़की नापसंद कर रहे हैं। यह संकेत शारदा को अविलंब समझ आ गया। फिर भी भोले-भाले सुधाकर, वर्मा जी की बातों से स्वयं को बहलाते रहे। 

आख़िर लड़की देखने के इस औपचारिक सत्र का अवसान हुआ और नमित का परिवार पिंकी की उपेक्षा करके चला गया। मगर पिंकी यह मानने को तैयार न थी कि नमित ने उसे रिजेक्ट कर दिया है। 

नमित के सामने अब एक ही समस्या थी कि क्या कह कर मना किया जाए। इसका हल भी नमित को सूझ गया। उसने वॉट्स ऐप पर सॉरी टाइप किया और क़िस्सा ख़त्म। 

शारदा डिनर के लिए बुलाने आई तो उसने पिंकी को गठरी की तरह एक चादर में लिपटा देखा। बहुत मनाने पर भी वह नहीं उठी मगर मोबाइल मम्मी के सामने रख दिया। शारदा को तो पहले ही आभास हो गया था। वह पिंकी को समझाना चाहती थी। गले लगा कर साहस बँधाना चाहती थी। जताना चाहती थी कि भावनाओं में न बहे। जो भी हुआ वह एक प्रक्रिया का हिस्सा था न कि उसकी भावनाओं का। 

आज दो दिन हो गए थे। पिंकी ने कुछ नहीं खाया। किसीसे बात भी नहीं की। अपने कमरे में गठरी बनी पड़ी रहती। शारदा को याद आया पिंकी को सफ़ेद रसगुल्ले बहुत पसंद हैं। वह लेकर गई मगर पिंकी ने देखा तक नहीं। मुश्किल से सिर्फ़ इतना बोली, “मुझे सुसाइडल थॉट आ रहे हैं।”

घबरा कर शारदा ने गूगल पर सायकाएट्रिस्ट खोज निकाला और उसे पिंकी का क़िस्सा बताया। डॉक्टर ने काउंसिलिंग की सलाह दी। ऑन लाइन काउंसिलिंग के तीन सत्र होने के बाद धीरे-धीरे वह अपनी सामान्य जीवन में लौटने लगी थी कि तभी सुधाकर ने फिर कहीं बात चला दी और यह उस लड़के का मैसेज था। पिंकी सोच रही है रिप्लाय दे या नहीं। 

शारदा सोच रही है यह आभासी मित्रता किस काम आती है भला! लोग कहते हैं इससे दोनों में आपसी समझ बनती है। समझ बनना क्या इतना आसान है। बीस-तीस सालों का साथ बिता चुके दम्पति कितनी आपसी समझ रखते हैं, सबने देखा है। अधिकतर पतियों को अपने साथी की पसंद का कुछ पता नहीं होता। वे यह भी न बता सकेंगे कि पार्टनर की पसंदीदा रेसिपि क्या है, रंग कौन सा है। वह किस बात पर उदास होती है और उदासी के पलों में क्या करती है। हाँ पत्नियाँ इस मामले में कुछ बेहतर स्थिति में हैं। उनकी ज़िंदगी पूछ-पूछ कर काम करते जो बीत रही है! . . . ऐसे में दूर बैठे दो चंचल मन युवा, आपसी समझ कैसे विकसित करते होंगे! समाज से निर्भय वे कितना सच बोलते होंगे . . . या केवल विषमलैंगिक आकर्षण का आनंद लेते होंगे! पता नहीं। शारदा स्वयं से लगातार प्रश्न कर रही है। 

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