टाइम पास
अनीता श्रीवास्तव
टाइम पास 1
“हलो! . . . कहाँ से बोल रहे हैं।”
“जहाँ हैं वहीं से बोल रहे हैं।”
“कहाँ हैं?”
“जहाँ से बोल रहे हैं।”
“कहाँ से बोल रहे हैं?”
“वहीं से जहाँ नेटवर्क है।”
“अच्छा तो आप यह बता रहे हैं कि वहाँ नेट वर्क है।”
“नहीं, हम कई दिनों से लगा रहे थे, लगा नहीं। आज लगा तो मुँह से निकल गया कि नेटवर्क है।”
“देखिए, फ़ालतू टाइम नहीं है मेरे पास।”
“मेरे पास तो बिल्कुलै नहीं है। तभी इस समय लगाया।”
“आप घुमा रहे हैं।”
“नहीं हम ख़ुद ही घूम रहे हैं।”
“फोन लगाते घूम रहे हैं!”
“नहीं फोन हम लगाते ही रहते हैं। घूमते कम ही हैं।”
“हाँ, वह तो हाँफी से समझ में आ रहा है।”
“घूमने के कारण ही लग गया।”
“अच्छा। बताइये क्या काम है?”
“क्या काम करते हैं आप?”
“आप नहीं जानते तो फोन किसलिए किया?”
“बताया ना, नेटवर्क था तो लग गया।”
“आप बिजली का बिल जमा करते हैं ना!”
“नहीं।”
“यहाँ के बी एल ओ हैं?”
“नहीं।”
“पोलियो ड्रॉप पिलाने आए थे ना आप बच्चों को?”
“नहीं।”
“चलिए कोई बात नहीं। आपसे इसी बहाने बात हो गई।”
“आपने मेरा समय बर्बाद किया।”
“नाराज़ मत हो भाई। कल तुम कर लेना . . . यूँ ही टाइम पास।”
टाइम पास 2
“भैया आलू कैसा दिया?”
“तीस रुपए किलो।”
“भैया टमाटर कैसे दिए?”
“साठ?”
“और लौकी?”
“पच्चीस।”
“मगर पच्चीस कैसे देंगे?”
“जैसे बीस।”
“नहीं, चेंज नहीं है न! पाँच रुपिया। आपके पास है?”
“मिल जाएगा। नहीं तो धनिया पत्ती है ना!”
“पालक ताज़ा है?”
“हाँ जी एकदम ताज़ा है। दे दूँ?”
“करेले नहीं रखे आज?”
“नहीं भैन जी आज नहीं है।”
“खीरा देखूँ . . .” (हाथ में उठा कर, उलट-पलट कर)
“देख लीजिए . . . ” (थोड़ा खिसिया कर)
“कड़वा तो नहीं निकलेगा?”
“नहीं निकलेगा। बढ़िया है। देखिए पूरा बिक गया। थोड़ा ही बचा है। “
“कभी-कभी निकल जाता है न!”
तब तक बहन जी की बस आ गई।
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