कविता मेरी नज़र में
अनीता श्रीवास्तवझंझावात हुए जब अंतर्जगत में
सूखे पत्ते सी झर गई
प्यास को पी कर मर्यादा को
अमर कर गई
तोड़ कर मौन वाणी में
आहिस्ता उतर गई
बेनाम संबंध के सम्बोधनों में
देख दर्पण सा सँवर गई
दुनियादारी के बोझ तले
दबी . . . शायद मर गई
जी उठी और का दुःख देख कर
हद है मौत से मुकर गई
जो कर न सका आदमी दो हाथों से
कविता जज़्बातों से कर गई।
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