बड़ा आदमी
अनीता श्रीवास्तवअगल बगल से गुज़र जाते हैं
बड़े लोग
केवल धुँआ उड़ता है या धूल
सड़क किनारे खड़े रह जाते
पेड़ की तरह
धूल धूसरित लोग जैसे जंगली फूल
कोई रोता शिशु लिए माता
सायकिल पर जाता
ब्रेड वाला अख़बार वाला
या फिर ऊन वाला फेरी लगाता
बड़े लोग फिर भी रहते बेख़बर
कुछ नहीं असर
देखकर सब रहते बेअसर
जैसे दो हैं
दुनियाँ बड़ों और छोटों की
छोटे श्रम से बनाते
सुंदर बड़ों की दुनिया को
या फिर नहीं करते धुँए से काला
नहीं बुनते अपनी बड़ी
और असरदार
कामनाओं का जाला
सिर्फ़ रोटी के जुगाड़ में
ठंड गर्मी
कुछ नहीं लगती हाड़ में
उगले धुँए को अपने
फेफड़ों में जगह देता
बड़ा आदमी फिर भी बड़ा
उसका रहना कहना
सहना छोटों को
सब बड़ा।
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