बेशर्म इंसान . . . सर्वश्रेष्ठ कृति

01-08-2024

 बेशर्म इंसान . . . सर्वश्रेष्ठ कृति

अनीता श्रीवास्तव (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

देखिए, अब तक आपने इस पर ठीक से चिंतन नहीं किया। मैंने किया। नतीजा यूँ है:

संसार में ईश्वर की बनाई सबसे सुंदर रचना क्या है! अब तक जो अफ़वाहें फैलाई गई हैं उनके अनुसार आप मनुष्य का नाम लेंगे। मैंने भी यही ग़लती की थी। मगर जल्दी ही हाई प्रोफ़ाइल सफल विद्वानों ने मेरी राय में संशोधन कर मुझे कृतार्थ किया। और अब जो अद्यतन जानकारी है उसके मुताबिक़ एक बेशर्म इंसान ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। न केवल सबसे सुंदर बल्कि सदैव सुंदर दिखने वाली कृति है यह। वह एक ऐसा चेहरा अपनी ग्रीवा पर धारण किए रहता है जिस पर सुंदरता को मलिन करने वाले परिवर्तन नहीं होते क्योंकि उसके हृदय में तीर नहीं चुभते। वहाँ बेशर्मी की मज़बूत ढाल होती है जिसके भीतर हृदय भावनात्मक उठा पटक से अप्रभावित बना रहता है। जब भी उसे क्रोध करने लायक़ स्थिति से गुज़रना हो वह बर्फ़ की शिला बन जाता है। उसके ख़ुराफ़ाती मस्तिष्क से संदेश पा कर शरीर की ग्रंथियाँ ऐसे रसायन पैदा करती हैं कि वह शान्ति दूत-सा हो जाता है। उसके भीतर औरों की तरह आग नहीं धधकती। यों होती ज़रूर है पर वह उसे क़ाबू में रखता है। उसके भीतर जब भी करुणा का स्रोत फूट पड़ने को होता है वह धीरे से दिल के वे सोते बंद कर देता है और किसी अन्य सूराख़ से बाहर की ओर देखने लगता है। दयाद्र हो कर आँखों को गीला करना, आवाज़ ख़राब करना और होंठों की आकृति बिगाड़ना, ये घटनाएँ घट कर उसके सौंदर्य को कमतर नहीं बनातीं। वह इस सबसे बचते हुए विजेता का भाव लिए संसार में प्रतिष्ठा पाता है। 

मेरे मित्रों में एक हैं ऐसे। इसे मैं अपना सौभाग्य मानती हूँ। उन्हें बेशर्मी भगवान से वरदान में मिली है। जिन बातों पर लोग शर्मसार होते हैं, वह हें हें करके मामले को हल्का कर लेता है। कभी-कभी वह बेहद संवेदनशील मुद्दे पर बोलता है। तब उनके शब्द लोक व्यवहार का उत्कृष्ट नमूना पेश करते हैं। उनके विचार इनके उनके सबके हों, ऐसे लगते हैं। वह किसी क्रांति के पक्ष में नहीं रहता कभी। जो जैसा चल रहा है वैसा ही ठीक उसके जीवन का सिद्धांत है। वह इसे मज़े से निभाता है और तटस्थता का दामन थामे रहता है। किसी की मौत या बीमारी ‘भगवान् की मर्ज़ी’ होती है। किसीकी बदचलनी ‘ज़माना ख़राब’ का प्रतीक और किसी का लुट-पिट जाना ‘समय ख़राब होना’ कहलाता है। 

उसके पास देने को दुआएँ होती हैं जिन्हें वह पंछियों के चुग्गे की तर्ज़ पर घर से ले के निकलता है। जिनसे उसने आड़े वक़्त पर मदद ली थी वे जब किसी मुसीबत के मारे उनके आड़े आने लगते हैं तो वह ‘मैं आपके लिए दुआ करूँगा’ कहते हुए बढ़ लेता है। अपने मदद कर्ता को ले कर उसके मन में आपकी तरह कृतज्ञता का भाव न हो कर ‘मैं कितना स्मार्ट हूँ, मैंने इस आदमी को इस्तेमाल कर लिया’ या फिर ‘ये कितना बेवुक़ूफ़ है, मैं होता तो कभी न करता’ का भाव आता है। एक कुटिल मुस्कान के साथ वह स्वयं का अभिनंदन करता है। 

ऐसे लोगों के कारण संसार रहने लायक़ शांत बना हुआ है। ये सदियों तक जल को बिना तरंग के साधे रख सकते हैं। समाज की समरसता इन्हीं से है। 

ऐसे लोग ही संसार को सार हीन नहीं होने देते। वे रिश्वत माँगने को बुरा नहीं मानते बल्कि बिना माँगे ही देने को आतुर हो जाते हैं। वे तब तक आश्वस्त नहीं होते जब तक घूस की रक़म स्वीकारी न जाय। रिश्वत के पैसे के ऐसे सहज लेन-देन से दोनों ही पक्ष लगभग साधु दिखने लगते हैं। इन्हें आप चाह कर भी भ्रष्ट नहीं कह सकते आपको, शर्म आएगी। 

मिलावट खोरी और मक्कारी 

मिस्टर फ़लाने को कोई उनकी दुकान पर आ कर गंदी गालियाँ दे रहा था क्योंकि वह जो सामान उनकी दुकान से ले गया था, एकदम घटिया और मिलावटी निकला। फ़लाने जी प्रेम पूर्वक गालियाँ सुनते हुए तंबाकू रौंथ रहे थे। वे बिना बाधा अपना काम करते रहे। चिल्ला कर अपना बी पी बढ़ा लेने के बाद ग्राहक हाँफने लगा। फ़लाने ने उन्हें बैठाया और लड़के को पानी लाने भेज दिया। ग्राहक बेदम हो रहा था। लुट जाने की पीड़ा थी उसके चेहरे पर। बेचारा! मिस्टर फ़लाने, मगर, ग्राहक की पीठ सहला रहे थे। निर्लज्जता के साक्षात्‌ अवतार बने वे सहानुभूति दिखा रहे थे। उस वक़्त आप उन्हें देख लेते तो उनकी दिखावटी साधुता पर भावुक हो कर रो पड़ते। ऐसे होते हैं बेशर्म इंसान। बेशर्मी क्रोध के उत्तर में क्रोध नहीं करने देती। गाली के जवाब में गाली नहीं देने देती . . . और दुनिया ख़ूबसूरत बनी रहती है। 

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