अमरता सूत्रम समर्पयामी
अनीता श्रीवास्तवमित्रो! मुझे अमरता का फ़ॉर्मूला मिल गया है। मैं इम्प्लीमेंट करके देख रही हूँ। शुरूआती रुझान उत्साहवर्धक हैं। मुझे लगता है आपको भी फ़ॉर्मूला बता दूँ। आप भी आज़माते चलें। मैं अकेली अमर हो कर क्या करूँगी! मैं अमर हो गई और आप लोग धीरे-धीरे निकलते गए तो मेरे व्यंग्य कौन पढ़ेगा! आप देख ही रहे हैं, अगली पीढ़ियाँ दिनों-दिन अँग्रेज़ीदाँ होती जा रही हैं। आने वाले समय में जब हिंदी की जगह अँग्रेज़ी, लिखी-पढ़ी जाएगी तब हमारे लेखों का क्या होगा! वे तो बिना पाठक, लावारिस पड़े रहेंगे। कौन जाने, हम हिंदी में लिखने-पढ़ने वाली आख़िरी पीढ़ी हों। इसलिए मेरे साथ आपका अमर होना भी ज़रूरी है। मरने का काम तो अकेले भी हो जाता है। आइये! अब आपको फ़ॉर्मूला बता दें। इसे हम नीचे के अनुच्छेदों में दे रहे हैं, ले लें—
देह नश्वर है। इसका बहुत ध्यान रखें। आत्मा का क्या है वह तो ऑलरेडी अमर है, ध्यान रखें . . . या न रखें। देह को सुंदर वस्त्र-आभूषणों से सजाएँ। इसे वैभव प्रदर्शन का साधन बनाएँ। समारोहों और आयोजनों में जा-जा कर दिखाएँ। इतना ही नहीं, ज़रूरत लगे तो देह भी दिखाएँ। इसमें ग़लत क्या है? आत्मा को आप दिखा नहीं सकते। देह भी नहीं दिखाएँगे तो दिखाएँगे क्या? आज के समय में अपने सब काम ख़ुद करने पड़ते हैं। कोई आपको देखे इसके लिए आपको दिखना पड़ता है; उसकी नज़र में हुक फँसा कर उसे अपनी तरफ़ खींचना पड़ता है। इसके लिए देह एक विकल्प हो सकता है। देह प्रदर्शन से हुक का काम लें। दुनिया वालों को दिखाएँ कि देखो जी यह हमारी देह है। इसे हमने चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए बड़ी मुश्किल से पाया है। दुर्लभ मानव देह . . . इसलिए हम इसे दिखाए बिना नहीं रह सकते। महिलाओं का तो यह आधुनिक धर्म ही है। वे चाहें तो सिने तरिकाओं आदि का अनुसरण करें। पुरुष भी तनिक मेहनत करके सिक्स पैक बना लें। ये नहीं कि चालीस में ही बाल उड़ा लें। पेट बढ़ा लें। आजकल दिखावटी पहलवानी की दवाइयाँ और हेल्थ सप्लीमेंट आया करते हैं। इन पर ख़र्चा और चर्चा करें।
देह को अच्छा-अच्छा खिलाएँ-पिलाएँ। इसीके अनुसार ख़ुद को जिलाएँ। मेरे बाबा भजन करते थे, मुझे गोद में बैठा कर। मैं पूछती—आप गाते क्यों रहते हैं? वे कहते—भजन आत्मा का भोजन है। मुझे भी उन्होंने बरगला लिया था। बड़ी हुई तो धर्म की किताबों का सार प्राप्त हुआ। प्रज्ञा जागृत हुई। पढ़ कर नहीं, चैनल पर बाबाओं को सुन कर। सोशल मीडिया की ज्ञान गंगा में नाक दबा कर डुबकी लगाई। अब जा कर सही बातें पता चलीं। हमें देह को ही भोजन देना है। स्वाद और पौष्टिकता से भरा-पूरा भोजन। आत्मा को भोजन देने की ज़रूरत नहीं है। भूखा छोड़ दें। मरेगी नहीं। आत्मा तो ऑलरेडी अमर है!
देह के सुख के लिए भौतिक सुख-सुविधाओं को जीवन में उच्च स्थान दें। इसका अर्थ स्पष्ट करना ज़रूरी है, आप भ्रमित हो सकते हैं; निठल्ले लेखकों ने इस बाबत तमाम नकारात्मकता फैला रखी है। अच्छा सर्वसुविधायुक्त जीवन आपको देहाभिमान नहीं होने देता। जब देह को आप भौतिक सुखों में लिप्त रखेंगे तो उसे भूले रहेंगे। मैं इसे सरल करके समझाती हूँ—जब तक दुखता नहीं आपको याद नहीं आता कि सिर है। जब तक खुजलाए नहीं, आपको याद नहीं आता कि त्वचा चढ़ी है आप पर। आशा ही नहीं विश्वास है, आप समझ गए होंगे। हम समझाते ही ऐसा हैं!
घर में ठंडे–गरम की सुविधा, नौकर-चाकर, इत्र–फुलेल, हेयर डाई, कॉस्मेटिक आदि; जितना हो सकें, जुटा लें। सामर्थ्य के अनुसार देह को सुखी रखें। मेरी मानें तो देह सुख को जीवन में सर्वोपरि रखें। ऊपर के ऊपर इसमें से आसानी से निकल सकते हैं, जब निकलना होगा। उधर से जो लेने आएगा उसे नीचे तक नहीं आना पड़ेगा और आपको भी निकलने से पहले महीनों तक नीचे क्षैतिज नहीं होना पड़ेगा। टाइम नहीं लगेगा।
देह पंच तत्व से मिल कर बनी है, इन पाँचों के हमले से इसे बचाएँ—
छिति जल पावक गगन समीरा
पंच रचित अति अधम सरीरा।
प्रथम पंक्ति में जिन पाँच का नाम है, उनमें से हरेक को प्रदूषण के पंच से मारें ताकि बिना धम की आवाज़ किए इनके शरीर गिरते जाएँ। आध्यात्मिक धमकियों से हरगिज़ न डरें। आत्मा तो ऑलरेडी अमर है।
देह का अभिन्न अंग हैं इंद्रियाँ। इनकी ग़ुलामी करें। सारे सुखों की अनुभूति का हेतु हैं इंद्रियाँ। संसार में जो भी सुंदर है आँखों से आपके भीतर प्रवेश करता है। दूसरों की ज़िंदगी में झाँकते रहें। ताकते रहें। कुछ नयनाभिराम दिखे तो बेझिझक उसे घूरते रहें। आपको अपनी दृष्टि बाहर ही रखनी है क्योंकि संसार परिवर्तनशील है आप थोड़ी देर ध्यान में आँख बंद करके बैठेंगे, इतने में चीन से युद्ध न छिड़ जाय! मैं इसकी सलाह कभी न दूँगी। वैसे आजकल ध्यान के सौ तरीक़े सरीखी किताबें भी आ गई हैं। भ्रमित न हों। आपको सतत बाहर देखना है। भीतर है ही क्या सिवाय आत्मा के। वह तो ऑलरेडी अमर है!
लोग कहते रहते हैं आत्मीय प्रेम करें। मैंने किया और पाया लोगों के लिए आपकी आत्मा पायदान का काम करती है वे उस पर पैर पोंछ कर निकल जाते हैं। प्रेम के लिए देह ही ठीक है। लोगों को इसमें वासना की बास आती है तो आए। यह अपनी ही है जिस देह में पूजनीय आत्मा का वास है उसकी बास भी भली! देह की फ़रमाइश पूरी करें। इसे मरने न दें। आत्मा तो ऑलरेडी अमर है।
मैंने परोपकार की भावना से ट्रायल पर रहते हुए भी अमरता के सूत्र आपको दिए हैं। आप अपनी तरफ़ से प्रयोग करके अपने नतीजे साझा करें। चलूँ। कुछ और प्रयोग भी बाक़ी हैं।
1 टिप्पणियाँ
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अनुकरणीय सूत्रों का पिटारा । बहुत सुंदर । ज्ञान चक्षु खुल गए । आत्मा की नगण्यता और देह की अमरता पर सार्थक व्याख्यान । बधाई हो बहुत सुंदर । दिल ख़ुश हो गया ।
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