फूल की सुन्दरता 

01-12-2025

फूल की सुन्दरता 

पं. विनय कुमार (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

कितना सुंदर है फूल
जो दिखता है विभिन्न रंगों में
विभिन्न पौधों में 
साथ-साथ खिलते हुए
कितना प्रेम बिखरता है चारों ओर? 
 
हर रोज़ फूल आते हैं
प्रकृति के विराट रंगमंच पर
उपस्थित होते हैं प्रत्येक सुबह
देने के लिए संसार को एक अनूठा संदेश
यह जीवन जो विभिन्न दुखों का पहाड़ है
जहाँ निरंतर आना और जाना लगा हुआ है
जहाँ जन्म और मृत्यु
किसी उत्सव और एक नए सौंदर्य के साथ मनाए जाते हैं
यह हमें क्या सिखला रहा है? 
दिन और रात, सुबह और शाम, उत्थान और 
पतन, आगमन और प्रस्थान, 
सफलता और असफलता, विजय और पराजय:
कितना कुछ है हमारे जीवन में? 
 
प्रकृति का एक-एक अंग हमें
हर पल सिखला रहा है 
हर पल संबोधित कर रहा है
जीवन के राग और विराग:
चारों ओर फैले हुए हैं 
प्रकृति के इर्द-गिर्द
और हर एक दृश्य
 एक नया गवाक्ष खोलता है! 
 
 यह फूल—
 कितना सुंदर है? 
 कितना कोमल है? 
कितना आनंद है उसे देखने में
उसके सौरभ में कितना आह्लाद है
किसे महसूस होगा यह सब? 
सूरज की किरणों को
उल्लसित होकर मचलती हवाओं को
खुला आकाश जब 
अपने क्रोड़ में पैदा हुए फूलों को 
झाँक रहा होता है
एक अदृश्य
दृश्यावलियों के साथ
और यह धरा
इसकी सौंदर्य पूर्ण गागर में
अभी-अभी उस कुसुम दल ने
रात्रि के निविड़ अकेलेपन में 
जैसे सोए-अलसाए भावों के साथ 
उन्होंने अपनी आँखें खोली हैं! 
 
जीवन का सौंदर्य चारों ओर फैला हुआ है
उल्लास उमंग हमारे चारों ओर बिखरे पड़े हैं
विजय की पताका हमारे सामने लहरा रही है
हम पल-पल जीवंत बने हुए हैं
चारों ओर सुख और शान्ति का साम्राज्य फैला हुआ है
हम कहाँ और किसे ताक रहे हैं? 
आख़िर हमारे मन को क्या हो गया है? 
हम किसे ढूँढ़ रहे हैं? 
क्या पाना चाहते हैं हम प्रतिक्षण? 
कौन-सी विजय? 
कौन-सा सौंदर्य? 
कौन-सा आनंद? 
 कौन-सी सफलता? 
कौन-सी मन की चाह? 
आख़िर हमारा क्या लुट गया है यहाँ? 
हम क्या लाए थे इस धरा पर?
 
पंचतत्व से पैदा हुआ यह शरीर
अंततः पंचतत्व में मिल जाना है
विजय पाने का इच्छुक हमारा मन 
हमारी प्रकृति, हमारी विचारधारा, 
हमारा पंथ और धर्म 
अंततः क्या पाना चाहता है? 
क्या ले जाना चाहता है इस धारा से? 
अपने साथ अपने लिए? 
क्या कुछ सँभाल पाएगा? 
ढूँढ़ना है तो ढूँढ़ लें हम 
प्रकृति में उस सौंदर्य को 
उस आनंद को, शान्ति को, 
जो हमारे जीवन को
लगातार बनाता है, सजाता है, 
सँवारता है 
वह फूलों की सुंदरता, 
फूलों की मदमाती सुगंध, 
जिसे मैं पल-पल भूल जाना चाहता हूँ! 

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