आग के पास जाती हुई ज़िंदगी! 

01-12-2025

आग के पास जाती हुई ज़िंदगी! 

पं. विनय कुमार (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

धधकती आग पर चलना है
रहना है
सोना है
गाने हैं गीत ख़ुशी के
और उन सपनों में
सो जाना है देर तक
आग हर जगह है
हमारे भीतर भी
आपके भीतर भी
पूरे संसार में
और हमारी भावनाओं में
जो पल पल बीता जा रहा है
किसी ने किसी रूप में
वह सुलग रहा है
एक क्रोध के रूप में
एक बढ़ती हुई
महत्वाकांक्षा के रूप में
 
हमारे हृदय से फूटा हुआ एक ज्वार
अब सुलग जाना चाहता है
करने के लिए एक महाभारत
पैदा करने के लिए एक शीत युद्ध
और हर पल
जैसे अपना नहीं है
बीत रहा है
जो बीतेगा कल
वह भी अपना नहीं है। 
कल पर अपना वश किसका है? 
उस आग का ही
जो किसी भी क्षण विस्फोट हो सकता है! 
राजनीति में, साहित्य में, संस्कृत में, धर्म में, विचारधारा में, 
पंथ में, इतिहास में, परंपरा में, 
रीति-रिवाज़ में—
किसे सच कहें? किसे झूठ? 
 
सवाल लगातार अनुत्तरित बना रहेगा! 
हमारे भीतर तर्क और विवाद की
विसंगतियाँ बनीं रहेंगी। 
जैसे अपना कुछ नहीं हो! 
 
चारों ओर फैला है
विचारों का एक लंबा संघर्ष
जो इतिहास बनता है
जो परंपराएँ बनती हैं
और वही—
जीवन में नया बदलाव लाता है! 
 
परिवर्तन की यह दौड़ निरंतर चली आ रही है
यह दौड़
हमारे भीतर की आग की वजह से है:
जहाँ विनाश है
निर्माण भी है जहाँ
अनुसंधान भी है वहाँ
और बहुत कुछ है वहाँ—
क्या ढूँढ़ते हैं हम? 
 
अपने भीतर, अपने बाहर, 
जिसके आदि, अंत का पता नहीं
इसका कोई औचित्य भी नहीं
जिसका कोई सार भी नहीं
और हमारा जीवन जैसे बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने चला चला जा रहा है
हमारी उम्र बढ़ी चली जा रही है
और हर रोज़ हर पल
एक नयी ढलान की ओर
बढ़ता हुआ हमारा जीवन
समाप्त होने के लिए व्यग्र है
तब आप क्या कहेंगे? 
हमारी प्रगति या जीवन का विकास? 
या जीवन का विनाश? 
 
जहाँ एक शब्द के अनेक अनेक अर्थ होते हैं? 
हमारी समस्याएँ क़ानून की फ़ाइलों में दब जाती हैं
भिखमंगे, लाचार, बीमार, ज़रूरतमंद और 
अभावग्रस्त कहाँ जाएँगे
किसे ढूँढ़ेंगे अपने समाधान के लिए? 
 
क्या सच नहीं है हमारी बेचैनी
हमारी उम्मीद
जो अब समाप्त होने जा रही है
जो अब काल के गाल में
समा जाने के लिए व्यग्र है? 
 
यह आग कहाँ जाकर थमेगी? 
कहाँ जाकर शांत होगी? 
क्या यह सही नहीं है
कि हम निरंतर आग के नज़दीक जा रहे हैं
भूलते जा रहे हैं अपनी राह
अपनी इच्छाओं के इस महासागर में
डूबते-उतराते हुए आज? 
समाधान किसके पास है? 
 
कौन हमें अपनी ओर
खींच लेगा अहर्निश
जहाँ ध्वंस और निर्माण
एक साथ चल रहे हों एक राह पर
एक नाव पर
जो कुछ ही पलों में जलमग्न हो जाएगा! 
 

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