अकेलेपन की दुनिया में
पं. विनय कुमार
अकेलेपन की दुनिया में
आनंद नहीं होता
अकेलेपन की दुनिया
बिखर जाती है क्षण भर में ही
अकेलेपन की दुनिया
हमें चिंतन का स्वाद देती है
अकेलेपन की दुनिया
चिर आनंद देती है
अकेलेपन की दुनिया में
स्फूर्ति नहीं होती
अकेलेपन की दुनिया
मज़बूत नहीं होती
टिकाऊ नहीं भी होती है
अकेलेपन की दुनिया
माँजती है
हमारे भीतर के संघर्ष
और संस्कार को।
अकेलेपन की दुनिया
बनाती भी है
और बिगाड़ती भी है हमें
अकेलेपन की दुनिया
खुले में छोड़ देती है
साँस लेने के लिए हमें
तैरने के लिए हवाओं में
और
विभिन्न तनाव भरे विचारों में
अकेलेपन की दुनिया
बार-बार हमें बदलती है हमें
प्रेरित करती है आगे बढ़ने के लिए
अकेलेपन की दुनिया
जूझना सिखाती है!
अकेलेपन की दुनिया
शरारत भरी नज़रों से
हमें देखती रहती है
हमारे काम करने की शक्ति
और साहस को
फिर यह हमें
सरलता से काम करने के लिए
हमें तौलती है रह-रह कर
हमारे भीतर के
साहस, प्रयत्न और सौंदर्य को
अकेलेपन की दुनिया हमें
अकेले छोड़ देती है
अपने विचारों के साथ
जहाँ हर पल
मेरे भीतर के विचारों का
एक रेला लगातार
आता-जाता रहता है
और
मुझे भीतर से हिलाता है
सागर में हिलोर होने की तरह।
और
हमारी विचारधारा
और वैचारिक संस्कृति
और संघर्ष का नूतन अविरल प्रवाह
और फिर
इसके आसपास
और चारों ओर ढूँढ़ रहा होता है
सृष्टि की असंबलित परम्पराएँ
यह सृष्टि जो
हमारे भीतर फैली हुई रहती है
एक नए जीवन-सत्य के साथ।