अपने लिए जीने की अदद कोशिश 

15-10-2025

अपने लिए जीने की अदद कोशिश 

पं. विनय कुमार (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

आज हर कोई कर रहा है 
जीने की अदद कोशिश 
हर एक जीव—
जी लेना चाहता है अपनी ज़िन्दगी भरपूर
और सभी के भीतर एक स्वार्थ 
पलता-बढ़ता रहता है हर पल
हर पल के साथ जाने वाले 
हर पल संघर्ष के साथ 
दौड़ते-भागते रहते हैं अक्सर 
केवल अपने लिए चिंतित और परेशान 
जैसे भागी जा रही है 
हाथ से कटी हुई पतंग की ख़ूबसूरत डोर 
हर एक वक़्त के साथ 
एक हौसला चलता रहता है अक्सर 
एक धुँध जो सामने से आकर हमें
दिग्भ्रमित करती रहती है और मैं 
उसे भूलने की कोशिश करता हूँ अक्सर 
हर एक प्रयास के साथ बढ़ती चलती है ज़िन्दगी 
और अचानक 
मन का एक कोना 
बदल देता है ज़िन्दगी की एक राह 
हर एक राह देती है हमारे मन में
ढेर सारी उलझनें
हर एक राह भीतर से चलकर 
बतला देती है सामने की मुश्किलें 
हर बार एक नयी राह
मेरे भीतर पैदा होकर 
चलना चाहती है निरंतर 
लेकिन परंपराएँ और परिस्थितियाँ
रोक डालती हैं मेरी राह 
हर बार एक प्रयास
असफलता पाने की गवाही देता है
भीतर का अंतर्द्वन्द्व 
वैचारिक तूफ़ान 
किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति 
सब कुछ मेरे भीतर पैदा होता है और
नष्ट हो जाती हैं हर एक की ख़्वाहिशें
ख़्वाहिशें नष्ट होना सृष्टि की नियति है
जिसे सत्य से साक्षात्कार करना भी
कहा जाता रहा है। 
समय परिवर्तन के साथ आगे बढ़ता चलता है 
सफलताएँ-असफलताएँ
लाभ-हानि, यश-अपयश
तथा जय-पराजय
कटु सत्य है 
और इसी के साथ 
जीवन जीने की अदद कोशिश
करती रहती है
हमारी ज़िन्दगी।

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