मित्र!
पं. विनय कुमार
जब कोई मित्र नहीं हो
नहीं हो विश्वसनीय पड़ोसी
तब कैसे रहा जाए घर में
तब कैसे किया जाए काम
अपने ऑफ़िस में
तब कैसे चले जाएँ राह अकेले
लेकिन तब हमारा ईश्वर
हमारे साथ होगा
लेकिन तब हमारी कल्पनाएँ
हमारे साथ होंगी
लेकिन तब हमारी अनुभूतियाँ
और अनुभव हमारे साथ होंगे!
चल कर तो देखो तुम!
रास्ते कितने आरामदायक हैं
संसार में कोई अपना मित्र नहीं होता
अपना शत्रु नहीं होता
शत्रु तो
हमने-अपने व्यवहार से
तय किए हैं
पैदा किए हैं
बनाए हैं भी!
सूरज भी हमारा मित्र है
लेकिन वह हमेशा
हमारे साथ कहाँ रहता?
उस पर भी विश्वास कहाँ
कभी वह झुलसा कर
जला देना चाहता है हमारा शरीर
हमारा भोजन
और हमारा अंग वस्त्र:
सूरज—जो हमें जीवन देता है
पल भर में ही छीन लेता है वह अक्सर
आग—
जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है
वह भी तो कहाँ है अपनी?
भोजन वही देती है
पालन-पोषण वही करती है
और तीन रूपों में—
वह हमारे पेट को
हमारे पर्यावरण को
और हमारे जल को भी
बनाती है बचाती है
और अंत में वही तो है
जो पंचतत्व में
समाहित करने के लिए
हमारे साथ
हर वक़्त उठ खड़ी रहती है!
हवाएँ जो साथ-साथ बह रही हैं
वह भी तो मेरे साथ हैं
मेरे सुख-दुख में सह-सम्बन्ध बनाकर
चलती रहती है निरंतर अपनी गति से
वह अभी कहाँ है अपनी
जो उड़ा ले जाती है हमारा बचपन
हमारा यौवन और हमारी वृद्धावस्था।
किस-किस पर विश्वास करे यह जीवन—
कौन है?
कौन है अपना? कौन है पराया?
संसार तो स्वार्थ की दुनिया है
हमारे भीतर स्वार्थ है
जो जीवन को बहा ले चलता है
हवाओं की तरह
तूफ़ान की तरह
वर्ष की बूँदों की तरह
लू से झुलसाती-ग्रीष्म ऋतु की तरह!
बहुत लंबा व्याख्यान है इसका
जीवन को जी लेने का
अद्भुत सौंदर्य
चारों ओर बिखरा पड़ा है!
हम अकेले नहीं रह सकते!
रहना होगा किसी न किसी के साथ
हर एक व्यक्ति के भीतर
बहुत कुछ है
बहुत कुछ रहता है
लेकिन उसे वह
ठीक से जी नहीं सकता अकेले
हमें क्या चाहिए
इसका भी हमें ठीक से पता नहीं
लेकिन हमें जीवन का सौंदर्य चाहिए
जीवन का आनंद चाहिए
जीवन का उल्लास चाहिए
जीवन का उमंग चाहिए!
हमें बहुत कुछ चाहिए अपने जीवन से
जो मिल सकता है हमें अपने मित्रों से
अपने पड़ोसियों से
अपने साथ-साथ चलने वाले
हर एक शख़्स से
अकेले-जीवन नहीं चल सकता
नहीं चल सकता—
हँसना!
रोना!
गाना!
पंडित विनय कुमार
पटना
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