अकेला हो गया हूँ
पं. विनय कुमारमैं अकेला हो गया हूँ–
कोरोना की वज़ह से,
क्योंकि इसने कितने को अपनों से 
अलग किया है 
कितनों का दिल तोड़ा है,
कितनों का दिमाग़
पागल बना डाला है 
और कितनों को दरिद्र 
और पीड़ायुक्त!
 
कोरोना ने रोज़–रोज़
ग्रसा है निरीह जनों को . . . 
इस पर लिखने के लिए
शब्द नहीं है . . . 
ऐसा लगता है 
जैसे शरीर में ऑक्सीजन लेवल
घटने की तरह 
लिखने वाले शब्द भी घट 
गए हैं . . . 
आख़िर मैं ऐसी परिस्थिति में
क्या कुछ लिखूँ–
लिखे जाने के लिए 
मेरे हिस्से में बच गई है 
केवल और केवल
अंतःपीड़ा –
दुर्भाग्य –
 
लगता है जब–जब
मनुष्यता पर विज्ञान और
टेक्नोलॉजी का शासन होगा
मानवता का काला इतिहास
इसी तरह लिखा जाएगा–
जहाँ केवल स्वार्थ और
भौतिक सुख– साधनों
और प्रभुत्व की प्राप्ति के लिए 
सर्वथा मौन दिखनेवाला यह
अत्याचार दबे पाँव पहुँचकर 
'विजय पताका' लहराएगा–
तब केवल हम लोग न होंगे 
लेकिन तुम्हारे रहने की 
परिकल्पना भी मुश्किल होगी
और
तब तक 
जीवन का आनंद 
जा चुका होगा।
