नव वर्ष

23-02-2019

सागर में सब आँसू
बहाकर आ गया ।
सैलाब रौशनी का
जगाकर आ गया ।

किरनों के उजले रथ 
पर होकर सवार,
गागर सुधारस का 
छलकाकर आ गया।

पर्वतों- घाटियों में 
उछलता–कूदता,
रूप-नदी में गोता 
लगाकर आ गया ।

गुनगुनी धूप बनकर 
आँगन में उतरा;
नव वर्ष सब दूरियाँ 
मिटाकर आ गया ।
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
लघुकथा
सामाजिक आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य कहानी
कविता-मुक्तक
दोहे
कविता-माहिया
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में