खड़े जहाँ पर ठूँठ
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’खड़े जहाँ पर ठूँठ
कभी वहाँ
पेड़ हुआ करते थे।
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे।
छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार।
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे।
बदल गए हैं
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल-बवण्डर
सिर पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे कुएँ,
बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे।
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