घाटी में धूप
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’भोर की -
पहली किरन से
पुलक भरा
स्पर्श पाया
जैसे शिशु नींद में
रह - रहकर मुस्कुराया।
धूप उतरी
घाटियों में
ज्यों उतरता
सीढ़ियों से
पीठ पर लादे हुए
बस्ता किताबों का
एक छोटा
अबोध बच्चा
और जादू
रोशनी का
धरा पर
उतर आया।
बह उठी है
भीड़ सड़कों पर
परनाले - सी
छा गई गर्मी
ढलानों पर
और वक्त
थके चूर - चूर बच्चे - सा
कुनमुनाया।
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