कर्मठ गधा
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’घोड़ों का क़द ऊँचा है
माना पद भी ऊँचा है।
गधा नहीं फिर भी कम हुआ
ढोता बोझ नहीं ग़म है।
घोड़ा रेस जिताता है
कुछ जेबें भर जाता है।
जो-जो काम गधा करता
घोड़ा कब कर पाता है।
धीरज का है रूप गधा
नहीं क्रोध में जलता है।
रूखा-सूखा खाकर भी
बड़ी मस्ती में चलता है।
मान अपमान से परे गधा
कभी नहीं शोक मनाता है।
अपने ऊँचे मधुर स्वर में
गुण प्रभु के गाता है।
सुख-दुख से निरपेक्ष गधा
सचमुच सच्चा संन्यासी है।
जिस हालत में भगवान रखे
वही हालत सुख – राशि है।
गध कर्म का पूजक है
सुबह जल्दी उठ जाता है।
बीवी सोती रहती है
गधा ही चाय बनाता है।
एसी चैम्बर में घोड़ा
घण्टी खूब बजाता है।
गधा देर में जब सुनाता
तब घोड़ा चिल्लाता है।
दफ़्तर में जाकर देखा
गधे डटकर काम करें।
घोड़ा फाइलों में छुपकर
जब चाहे आराम करे।
घोड़ा खाता है तर माल
गधा बस पान चबाता है।
चाहे जितना भी थूके
न पीकदान भर पाता है।
जिस दिन गधा नहीं होगा
दफ़्तर बन्द हो जाएँगे।
आरामतलब जो भी घोड़े
सारा बोझ उठाएँगे।
इसीलिए कहता हूँ
गर्दभ का सम्मान करो।
राह – घाट में मिल जाए
कभी न तुम अपमान करो।
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