मेरी दीदी
प्रभुदयाल श्रीवास्तवमेरी दीदी बातें करती,
रहती अक्सर ऊट-पटांग।
छड़ी घुमाकर कहती रहती,
पल में गधा बना दूँगी।
आसमान में गिद्ध बनाकर,
तुमको अभी उड़ा दूँगी।
बात-बात में मारा करती,
मेरे सब कामों में टाँग।
टोपा स्वेटर मेरे पहने,
कर डाले ढीले ढाले।
चित्र बनाये थे जो मैंने,
घिसकर रबर मिटा डाले।
कापी पेन पेंसिल दे दो,
जब तब होती रहती माँग।
फिर भी मेरी दीदी मुझको,
लगती बहुत भली प्यारी।
अम्मा बापू को हम दोनों,
लगते घर की फुलवारी।
लड़ते भिड़ते रहकर भी हम,
रोज बनाते नए-नए स्वाँग।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- किशोर साहित्य कविता
- आत्मकथा
- किशोर साहित्य नाटक
- बाल साहित्य कविता
-
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
- बाल साहित्य कहानी
- किशोर साहित्य कहानी
- बाल साहित्य नाटक
- कविता
- लघुकथा
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-