भैयाजी को अच्छी लगती
प्रभुदयाल श्रीवास्तव भैयाजी को अच्छी लगती,
पहली की हिंदी पुस्तक।
पहला पाठ खुला तो दिखता,
जन मन गण का गान।
भैयाजी को हो जाता है,
देश प्रेम का भान।
पाठ दूसरा खुला तो होती,
क ख ग घ की दस्तक।
आगे के पाठों पर होती,
ख़ास फलों की मार।
इमली दिखती आम लटकते,
दिखते लाल अनार।
पन्ना जब आगे पलटा तो,
दिखते कार मेट्रो रथ।
अंतिम पन्नों पर दिख जाते,
सूरज तारे चाँद।
उसी पाठ में बने हुए हैं,
आँख नाक और कान।
सबसे नीचे चलता दिखता,
काला एंजिन फक फक फक।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- किशोर साहित्य कविता
- आत्मकथा
- किशोर साहित्य नाटक
- बाल साहित्य कविता
-
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
- बाल साहित्य कहानी
- किशोर साहित्य कहानी
- बाल साहित्य नाटक
- कविता
- लघुकथा
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-