आज़ादी के साल पचहत्तर

01-11-2022

आज़ादी के साल पचहत्तर

प्रभुदयाल श्रीवास्तव (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

 

पात्र-बच्चे


सूरज:        आयु १५ वर्ष 
चंदा:        आयु ११ वर्ष 
रहमान:        आयु १६ वर्ष 
सलमा:        आयु १३ वर्ष 
 
[पर्दा खुलता है, मंच पर सम्पूर्ण अन्धकार है। अचानक नगाड़े की आवाज़ सुनाई पड़ती है और]

एक स्त्री स्वर गूँजता है: आज़ादी के साल पचहत्तर . . .
उत्तर में पुरुष स्वर गूँजता है: मना रहे हैं हम सब घर-घर 

[सामूहिक स्वर में]-2 बार:

आज़ादी के साल पचहत्तर, मना रहे हैं हम सब घर-घर

पुनः स्त्री स्वर: बीत गए पचहत्तर साल, 
पुरुष स्वर: देश हुआ कितना ख़ुश हाल? 
स्त्री स्वर: इन पचहत्तर सालों में, हमने क्या-क्या पाया है? 
पुरुष स्वर: सूरज नया उगाया है, नया उजाला लाया है। 

 

[सारी आवाज़ें परदे के पीछे से आ रही हैं] 
[मंच पर प्रकाश आ जाता है और कुर्सियों पर सूरज और चन्दा बैठे दिखाई पड़ते हैं। 

 चंदा:

भैया यह कैसा शोरगुल है, कैसी नारेबाज़ी हो रही है, नगाड़े भी बज रहे हैं, क्या कोई चुनाव है? 

सूरज:

धत पगली, अभी कहाँ हैं चुनाव-उनाव। 

चन्दा:

फिर यह हो हल्ला नारेबाज़ी, क्यों हो रहा है यह सब? 

सूरज:

बहन यह आज़ादी के जश्न की तैयारी है। कल पनद्रह अगस्त है न, तुम्हें मालूम है न, इस दिन हम आज़ाद हुए थे . . .

चन्दा:

लेकिन स्वतंत्रता दिवस तो हम हर साल मनाते है पर ऐसा हो हल्ला नगाड़े, ऐसा तो कभी नहीं देखा। 

सूरज:

इस साल कोई ख़ास बात है। 

चन्दा:

ख़ास बात! क्या ख़ास बात है? भैया बताओ न। 

सूरज:

इस साल हम आज़ादी की हीरक जयंती मनाएँगे, हीरक जयंती [हीरक जयंती पर जोर] 

चन्दा:

हीरक जयंती, यह हीरक जयंती क्या होती है भैया? 

सूरज:

लो अब इतना भी नहीं जानती तुम। किसी घटना के पचहत्तर साल बीत जाने पर उस घटना के उपलक्ष्य में जो जश्न मनाया जाता है उसे हीरक जयंती कहते हैं।

चंदा:

भैया हम १५ अगस्त को आज़ाद हुए थे तो ग़ुलाम कब हुए थे और क्यों हुए थे? 
सूरज:

फिर प्रश्न! इसलिए तो कहता हूँ किताबें पढ़ा करो। मोबाइल में फ़ालतू सहेलियों से चैटिंग न करके काम की चीज़ें देखा करो तो ज्ञान बढ़ेगा, अक़्ल आएगी। 

चंदा:

ऊँह, क्या मैं काम की चीज़ें नहीं देखती मोबाइल में? देखती हूँ, लेकिन मुझे तो इतिहास समझ में ही नहीं आता। हमें आज़ादी अँग्रेज़ों से मिली थी न? हम कितने दिन ग़ुलाम रहे? 

सूरज:

दिन! अरे शर्म करो, हम लगभग दो सौ साल तक ग़ुलाम रहे अँग्रेज़ों के। हमें, तरह-तरह की यातनाएँ दी गईं, अरे हमें तो जानवरों से भी बदत्तर समझा गया। कई क्लबों और आलिशान होटलों के बाहर लिखा होता था कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश निषेध। 

चन्दा:

तो क्या हम दो सौ साल पहले आज़ाद थे? 

सूरज:

थे भी और नहीं भी थे। हमारा देश पहले बहुत वैभवशाली था। यह सोने की चिड़िया कहलाता था। यहाँ की भूमि देव-भूमि थी। यहाँ के संतों ने, मनीषियों ने, ऋषियों ने वेद लिखे, पुराण लिखे, रामायण लिखी, महाभारत, गीता लिखी स्मृतियाँ लिखीं और अनेकों अनेक सद्‌ ग्रन्थ लिखे। यहाँ सुश्रुत, चरक और धन्वंतरि जैसे अद्वितीय वैद्य हुए हकीम हुए, भास्कराचार्य, आर्यभट्ट जैसे गणिताचार्य हुए बाल्मीकि, वेद व्यास जैसे संत लेखक कवि हुए, चाणक्य जैसे अर्थशास्त्री हुए और . . . 

चंदा:

फिर हम ग़ुलाम कैसे हो गए? 

[तभी मंच पर रहमान और सलमा का प्रवेश] 

रहमान:

हम अपनी मूर्खताओं के कारण ग़ुलाम हो गए चंदा बहन। हमारे देश में बहुत सारे छोटे–बड़े राज्य थे। सबमें अलग-अलग राजे-महाराजे थे। ये राजे-महाराजे थे तो बहुत बहादुर लेकिन अधिकांश घमंडी थे और विस्तारवादी थे। आपस में लड़ते रहते थे। 

चन्दा:

लेकिन इससे ग़ुलामी का क्या मतलब है? 

रहमान:

हमारी आपसी फूट का लाभ विदेशी हमलावरों ने उठाया। हमारे सुन्दर स्वर्ग के सामान प्रिय देश पर बाहरी हमले होते रहे और हम धीरे-धीरे ग़ुलामी की और बढ़ते गए। 

सलमा:

सिकंदर, महमूद ग़ज़नवी, मोहम्मद गौरी ने जो हमले शुरू किये तो फिर हमले बढ़ते ही गए। 

रहमान:

दिल्ली सल्तनत पर, ग़ुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोधी वंश काबिज़ होते रहे। 

सलमा:

फिर मुग़लों ने जो पैर जमाये तो फिर तीन सौ साल तक उनका शासन देश में रहा। सत्ता के लिए भारी संघर्ष हुए ख़ून ख़राबा हुआ लेकिन एक मिली जुली संस्कृति भी पनपी गंगा जमुनी तहज़ीब। पीर पैगंबरों, सूफ़ी संतों ने जाति धर्मों के मेल जोल के लिए बहुत प्रयत्न किये। 

रहमान:

लेकिन भाग्य में एक ग़ुलामी और लिखी थी। हमारे राजाओं की कायरता और नबाबों की अकर्मण्यता से बाहर से एक विदेशी कम्पनी ईस्ट इंडिया कम्पनी जो इस देश में मात्र व्यापार करने आई थी इस देश की शासक बन बैठी। 

चंदा:

क्या! क्या भैया, व्यापार करने आई कंपनी यहाँ की शासक बन गई? कैसे हमारे राजे-महाराजे, नबाब, शहंशाह इतने नाकारा थे? 

सलमा:

अरे नहीं बहन चन्दा, नाकारा नहीं थे, मूर्ख थे निरा मूर्ख, आपस में लड़ते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसी फूट का फ़ायदा उठाया . . . बाँटो और राज्य करो की नीति अपनाई। दो बिल्लियों और बंदर वाली कहानी सुनी है न। बस वैसे ही कुछ। पूरा देश हड़प लिया। 

सूरज:

लेकिन देश का जन मानस जागृत था। क्रान्ति की चिंगारी राख के अंदर दबी हुई थी। ग़ुलामी किसी को पसंद नहीं थी। आज़ादी के लिए आंदोलन पूरे देश में हो रहे थे। अँग्रेज़ों का दमन चक्र जारी था। 

सलमा:

फिर भी क्रांतिकारियों के हौसले बुलंद थे। महारानी लक्ष्मीबाई ने १८५७ की क्रांति में अपना बलिदान दे दिया। दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह के नेतृत्व में कई राजाओं नवाबों ने अँग्रेज़ों के विरुद्ध मोर्चा खोला लेकिन अँग्रेज़ों की भारी पल्टन और आधुनिक हत्यारों के आगे तीर तलवारों जैसे पुराने हथियारों से लड़नेवाले राजा पराजित हो गए। 

सूरज:

राख में दबी हुई चिंगारी फिर भी सुलगती रही। नई चेतना, नई ऊर्जा भगत सिंह चंद्र शेखर आज़ाद, बिस्मिल, राज गुरु, सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के रूप में उभरी। हज़ारों युवा जान की बाज़ी लगाकर देश में क्रांति का बिगुल फूँक रहे थे। 

रहमान:

गाँधीजी ने जो अफ़्रिका से अपनी वकालत छोड़कर अपने देश भारतवर्ष वापस आ गए थे देश की आज़ादी के लिए अहिंसक तरीक़े से आंदोलन छेड़ दिया। 

सलमा:

इस तरह आज़ादी के लिए दो तरह से आंदोलन चल पड़ा। एक गाँधी जी का अहिंसक आंदोलन और दूसरा सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन। 

सूरज:

आज़ादी पाने के लिए सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाई और अँग्रेज़ी शासन के विरुद्ध खुला युद्ध छेड़ दिया। 

रहमान:

दूसरा विश्व युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। गाँधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत कर दी थी। करो या मरो के नारे के साथ जनता मैदान में थी। एक तरफ़ सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज दूसरी तरफ़ भारत छोड़ो का अहिंसक आंदोलन। और सिर पर मँडरा रहा विश्व युद्ध। ब्रिटिश हुकूमत को भागना ही पड़ा। और १५ अगस्त १९४७ को हम आज़ाद हो गए। 

सूरज:

हमनें ब्रतानिया हुकूमत का यूनियन जैक उतारकर अपना तिरंगा फहरा दिया। 

रहमान:

पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधान मंत्री बने। 

चंदा:

सच में बड़ी दर्दनाक और रोचक है हमारी ग़ुलामी और आज़ादी की कहानी। रहमान भैया, अब तो हम ख़ुश हैं न, आज़ाद हैं, स्वतंत्र हैं उत्साहित हैं। 

रहमान:

हाँ बहन चंदा हम ख़ुश हैं, बहुत ख़ुश। जहाँ हमें दो जून की रोटी भी मुहैया नहीं होती थी, लोग भूखे पेट सोने को मजबूर थे वहीं अब हम भरपूर अनाज उत्पन्न कर रहे हैं . . .

सलमा:

पहले जहाँ बड़े शहरों को छोड़कर सारे देश में अन्धकार छाया रहता था हम मिट्टी के तेल की ढिबरी में पढ़ने के लिए मजबूर थे आज गाँव-गाँव, शहर-शहर में बिजली है। खेतों में बिजली की मोटर है पम्प है। सिंचाई के भरपूर साधन हैं। 

सूरज:

देश की नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बन चुके हैं। नहरों का जाल बिछा है। पीने के पानी केलिए हैंड पंप और नलों की व्यवस्था है। 

रहमान:

देश में अच्छी रेल सेवायें उपलब्ध हैं . . .

सलमा:

अब गाड़ियाँ बिजली से चलती हैं। सस्ती हैं और समय भी बचता है। 

सूरज:

देश में सड़कों का जाल बिछ गया है। उत्तर-दक्षिण गलियारा में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से कन्याकुमारी तक शानदार सड़क का निर्माण हो चुका है। 

रहमान:

पूरब पश्चिम गलियारे में आसाम के सिलचर से गुजरात के पोरबंदर तक सड़क का निर्माण हो चुका है। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में देश के महानगर मुंबई चेन्नई कोलकाता और दिल्ली को आपस में जोड़ दिया गया है। 

सूरज:

हमारी तीनों सेनाएँ देश की रक्षा करने में सक्षम हैं। हमारे पास परमाणु ताक़त है। 

रहमान:

हमारे पास आधुनिकतम हथियार हैं। हम दुनियाँ के दूसरे ताक़तवर मुल्कों के समकक्ष खड़े हैं। हमारे पास मारक मिसाइलें हैं। जो पलक झपकते ही दूर बैठे दुश्मन देशों की सेना नेस्तनाबूद कर सकती हैं। 

सलमा:

हमारे पास अग्नि पृथ्वी जैसी सुपर सोनिक क्रूज़ मिसाइलें हैं। बोफ़ोर्स तोप है। ब्रह्मोस बेलस्टिक मिसाइलें हैं एंटीटैंक गाइडेड मिसाइलें हैं। और राफ़ेल जैसे लड़ाकू जहाज़ हवाई बेड़े में शामिल हैं। 

सूरज:

और अभी अभी एस-४०० मिसाइल डिफ़ेन्स सिस्टम भी हमारी वायु सेना को मिल रहा है। 

सलमा:

देश में बड़े-बड़े कारखाने चल रहे हैं रोज़मर्रा की सभी वस्तुएँ हमारे देश में बन रही है। संचार क्रांति के असर से पूरी दुनियाँ सिमटकर एक गाँव में तब्दील हो रही है । इससे हमारा देश अछूता नहीं रहा। घर-घर मोबाइल टीवी, कम्प्यूटर ने तो जैसे क्रांति ही ला दी है। 

रहमान:

अब देश में कच्चे खपरैल वाले घर नहीं बचे। सब घर पक्के हो गए। 

सलमा:

अब लोगों को शौचालय के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता। हर घर में पक्के शौचालय हैं। 

सूरज:

हम रूस और अमेरिका की तरह अंतरिक्ष में भी पैर जमा चुके हैं। हमारे उपकरण मंगल की कक्षा में पहुँचने में क़ामयाब हो चुके हैं। चंदमा पर पहुँचने को अब हम बेताब हैं। 

रहमान:

देश के लगभग हर घर में गैस चूल्हा है और सिलेंडर है। 

सूरज:

देश के हर गाँव में स्कूल है। घर-घर में टू व्हीलर है। अधिकांश घरों में फ़ोर व्हीलर है। 

रेहमान:

सड़कें चमकदार हैं। वाहन दौड़ रहे हैं। दुकानों में भीड़ है। लोगों के पास पैसा है। 

सलमा:

अधिकांश लोगों को मुफ़्त अनाज मिल रहा है। ग़रीबों को बिजली मुफ़्त मिल रही है। 

रहमान:

महिलायें सेना में भर्ती हो रहीं है। महिलायें हवाई जहाज़ उड़ा रही हैं। 

सलमा:

महिलायें कुश्ती लड़ रही हैं, टेनिस खेल रही हैं बैडमिंटन खेल रहीं है, और क्रिकेट भी खेल रही हैं। 

सूरज:

केवल खेल नहीं रहीं हैं स्वर्ण पदक जीत रहीं हैं। देश का नाम भी रोशन कर रहीं हैं। पुलिस में भी अपने जौहर दिखा रहीं हैं। कुशल प्रशासनिक अधिकारी भी बन रही हैं। 

चंदा:

क्या बात है सूरज भैया, रहमान भैया और सलमा दीदी, मज़ा आ गया। लेकिन एक बात भूल रहें आप लोग, स्मरण करो . . .

सभी:

क्या! क्या . . .? 

चन्दा:

कचरा गाड़ी अब घर-घर में आती है। 
कचरा रोज़ उठाकर के ले जाती है। 
सड़कों पर अब रोज़ बुहारी लगती है। 
सड़कें चाँदी जैसी चम-चम करती हैं 

वाह! क्या बात है चंदा, [सब ताली बजाते हैं और उठकर खड़े हो जाते हैं। और गाते हैं]

आज़ादी के साल पचहत्तर होने तक, 
हमने भारत बिलकुल नया बनाया है। 
लिए तिरंगा हाथों में हम दौड़ रहे, 
जन-मन-गण हम सबने मिलकर गाया है। 
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब मिलकर, 
रहते बिलकुल भाई-भाई जैसे हैं। 
नहीं ग़रीबी पूरे से मिट पाई है, 
फिर भी लोगों की जेबों में पैसे हैं। 
चलना हमने नहीं कभी भी छोड़ा है, 
हम मंज़िल की ओर बढ़े ही जाएँगे। 
चलते-चलते हम मंज़िल तक पहुँचेंगे, 
और अंत में विश्व गुरु कहलायेंगे। 

[धीरे-धीरे पर्दा गिरता है।] 

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