व्यस्त बहुत हैं दादीजी
प्रभुदयाल श्रीवास्तवव्यस्त बहुत हैं दादीजी अब,
नहीं समय मिलता पल भर का।
सुबह- सुबह से वाट्स एप में,
और फ़ेस बुक में भिड़ जातीं।
सभी पड़ौसी नातेदारों,
से वे हाय हलो कर आतीं।
पहले मम्मी से लड़ती थीं,
अब माहौल ठीक है घर का।
दादाजी के संग कमरे में
करतीं है सत्संग मज़े से।
और देखतीं टी. वी. में हैं,
सभी सीरियल अपने मन के।
न्यूज़ देखना नहीं छोड़ती,
उन्हें पता हर एक ख़बर का।
बचपन की बिसरी सखियों को,
एक -एक कर ढूँढ़ लिया है।
सूख चुके सब संबंधों को,
मोबाइल से हरा किया है।
अब तो ज्ञान समेटा करतीं,
गूगल से वे दुनियां भर का।
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