अपूर्व अनुभूतियों से भरी विकेश निझावन की ‘छुअन तथा अन्य कहानियाँ’

01-02-2023

अपूर्व अनुभूतियों से भरी विकेश निझावन की ‘छुअन तथा अन्य कहानियाँ’

विजय कुमार तिवारी (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

समीक्षित कृति: छुअन तथा अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह) 
कहानीकार: विकेश निझावन
प्रकाशक: विश्वास प्रकाशन, अम्बाला
मूल्य: ₹325/-

साहित्य की तमाम विधाओं में ‘कहानी’ की अपनी अलग पहचान है। कहानी का परिदृश्य हर तरह से विस्तृत और व्यापक है। पहले की तरह समकालीन दौर में भी दुनिया भर में कहानियाँ ख़ूब लिखी और पढ़ी जा रही हैं। कहानी ने अपने तेवर-कलेवर में, अपनी भाव-भंगिमा में ख़ूब विस्तार किया है। हमारा समाज जटिल है तो कहानियाँ उस जटिलता को रेखांकित करती हैं, संवेदना और भाव-प्रवणता द्वारा श्रेष्ठ का वरण करती हैं। साहित्य समाज का आईना है तो अन्य विधाओं की तरह कहानी विधा उस आईना का मोहक और साफ़-सुथरा स्वरूप है। 

सुखद संयोग है, मेरे सामने अम्बाला के चर्चित और वरिष्ठ कथाकार श्री विकेश निझावन जी का, हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत, कहानी संग्रह “छुअन तथा अन्य कहानियाँ” है। विकेश निझावन जी के दस कहानी संग्रह, चार कविता संग्रह, दो उपन्यास, एक लघुकथा संग्रह तथा कुछ बाल पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी अनेक कहानियाँ अन्य भाषाओं में अनूदित और पुरस्कृत हुई हैं। 

‘ठिठकती नन्हीं-नन्हीं पदचापें’ शीर्षक से अपनी भूमिका में बहुचर्चित कथाकार राजी सेठ ने सशक्त, सार्थक टिप्पणी की है जिसे उद्धृत करना उचित ही है, “विकेश की कहानी पढ़कर एक अलग सी अनुभूति होती, लगभग अपूर्व। भाषा और शिल्प के स्तर पर एकदम सीधा सहज-सा ढाँचा। कलात्मक जटिलता की ज़ाहिरा तौर पर कोई चुनौती नहीं, फिर भी एक जगह पर पहुँच कर, उस तंतु जाल में, ख़ामोशी से बहता प्राण-प्रवाह अचानक रुक जाता है। ज़िद्दी हो जाता है। पाठक को आगे बढ़ जाने देने से इनकार करता है। यह वह गाँठ या अटकाव या हठ है जिसके चलते निर्बाधित सहजता के चलते पाठक को रुक जाना पड़ता है। वहीं खड़े होकर कथा के मर्म को, मूल प्रेरणा को, अन्तर्वस्तु को तलाशना पड़ता है। नये सिरे से कथा के आरम्भ में लौटना पड़ता है।” उन्होंने इसका विस्तार से वर्णन और उनकी कहानियों को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट किया है। अंत में राजी सेठ निझावन जी के लेखन को लेकर लिखती है, “विकेश के कथा-क्रम और गुण-धर्म की पहचान आशा और विश्वास से देखी जा सकती है। वे अपने सृजनकर्म में स्थिरचित्त और जीवंत हैं।” 

‘छुअन तथा अन्य कहानियाँ’ संग्रह में छोटी-बड़ी 23 कहानियाँ हैं। पहली कहानी ‘यहाँ कोई बैठा है’ ट्रेन से यात्रा करने वालों के लिए जाना-पहचाना दृश्य प्रस्तुत करती है। यहाँ यात्रियों की बदलती मनःस्थितियों, उनके आपसी संवाद और व्यवहारों का मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। किसी की आँखों में चमक है और किसी की आँखों में ख़ालीपन। पल भर में चेहरे में इतना परिवर्तन कैसे हो जाता है? बुढ़िया प्रसंग रोचक है, प्रश्न खड़े होते हैं और उसके कथन पर लोग हँसते हैं—‘मैंने इस गठरी में दुनिया को बंद करके रखा हुआ है। मैं जहाँ भी जाती हूँ, पूरी दुनिया साथ लेकर चलती हूँ।’ बुढ़िया रोटी माँगकर सबको निरुत्तर कर देती है। वह गाली देती है और ठहाका लगाकर हँसती है। निझावन जी ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से सबके मनोभावों को इस कहानी में दिखा दिया है। ‘गाँठ’ कहानी के दृश्य और संवाद बहुत कुछ कहते हैं। सारे पात्र संशय, संवेदना में जी रहे हैं। जीवन में अनेक कारणों से गाँठ पड़ जाती है और जान ले लेती है। यहाँ मनोवैज्ञानिकता ही मूल में है और पूरा का पूरा परिवार उसका शिकार है। कहानी जटिल अन्तर्सबन्धों को उजागर करती है। निझावन जी की कहानियाँ पारिवारिक जटिलताओं को बख़ूबी व्यक्त करती हैं। ‘सिलवटें’ ऐसी ही कहानी है। यहाँ भी संशय है। शक और संशय सब कुछ तबाह कर देते है। क़दम-क़दम पर कहानी अन्तर्विरोधों को सामने लाती है, संवेदना, निष्ठुरता और कमज़ोरी के प्रसंग भरे पड़े हैं। 

‘उसका फ़ैसला’ मार्मिक कहानी है। चम्पा की बेटी को प्यार हो गया है। छोटी बीजी विद्या को समझाती है। विद्या छोटी बीजी के नाम चिट्ठी में सारी कहानी लिख देती है। लिखती है, “उसे एड्स है। एड्स के रोगी को प्यार नहीं मिले तो जल्दी मर जाता है। पत्नी छोड़कर चली गई है। उसकी सेवा करूँगी तो लम्बी उमर पा जायेगा। मैंने शादी की बात की, उसकी आँखें छलछला आईं। शादी का फ़ैसला मेरा है। उसने मुझे नहीं फाँसा है।’ निझावन जी कहानी को मोड़ देते हैं और चमत्कृत करते हैं। निझावन जी बातों के भीतर की बातें पकड़ते हैं, उसपर सोचते-विचारते हैं और कहानी का विषय बना लेते हैं। उनका मनो-चिन्तन सशक्त है। ‘सुरंग’ कहानी में संवाद के बाद का मनोविज्ञान अचम्भित करता है—जाने क्यों दोनों को लगा कि वे एक-दूसरे से कतराने लगे हैं। लड़की की चीख, उसका रोना, बूढ़े आदमी द्वारा बड़े पाप की कहानी सुनाना, बुढ़िया के तर्क, ट्रेन यात्रा में जितने लोग उतनी कहानियाँ, सरकार पर दोषारोपण आदि-आदि। निझावन जी लिखते हैं, “बहुत प्रगति कर ली है मेडिकल साइंस ने, लेकिन मन की गुत्थियों को कहाँ सुलझा पाई ये साइंस।” यह प्रश्न झकझोरता है, आज कानों पर हाथ रख रहे हो, कल को देखना भी बर्दाश्त न कर पाये तो क्या आँखें भी बंद कर लोगे? तब चलोगे कैसे, गिर जाओगे। सुरंग के बिम्ब ने कहानी को सशक्त बना दिया है। 

‘आश्रम’ कहानी में विस्तार है, सब कुछ वीभत्स और संवेदनाओं से भरा है। मास्टर जी कहते हैं—ये प्यार से क़ाबू में आने वाले बच्चे नहीं हैं, जाने कैसा-कैसा ख़ून इनकी रगों में दौड़ रहा है। उदात्त भाव-विचार के बाबूजी हैं, कहते हैं—इसे ही तो बदलना हमारा मक़सद है मास्टर जी। आश्रम की इमारत के पीछे मदनलाल जी का पैसा, बाबूजी की ताक़त, मास्टर जी की देखभाल और कस्तूरी की भागदौड़ है। कस्तूरी को लगा, कोई सहला रहा है, किसी दानव ने पकड़ रखा है, बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है। उसने कहा—मास्टर जी आप? उसे माँ याद आई, पूरी कहानी याद आई। माँ ने चाकू दिया था। कस्तूरी को लगा, वह माँ में परिवर्तित होने लगा है। उसने थैले से चाकू निकाला और धार दिलवाने चल पड़ा। निझावन जी ने समाज में व्याप्त रोग को समझा है और ऐसे सम्मानित चेहरे को बेनक़ाब किया है। ‘सुरक्षा-कवच’ टूटते-बिखरते रिश्तों और छल-प्रपंच की कहानी है। विकेश जी अपने आसपास को देखते हैं, समझते हैं और ऐसी कहानियाँ खोज निकालते हैं। यहाँ भी मनोविज्ञान है। आज की पीढ़ी कोई बंदिश नहीं झेलना चाहती, जो पसंद नहीं, उसे रास्ते से हटा देना चाहती है। शिप्रा का अपना ही चरित्र संदिग्ध है, उसने सब कुछ योजना बद्ध तरीक़े से किया है। कथ्य-कथानक विस्मित-चकित करते हैं और कहानी कोई संदेश देती है। 

‘चूड़ियाँ’ प्रेमानुभूति, उम्मीद, आशा और निराशा की कहानी है। रज्जो को गुरुद्वारे में जाते हुए अपने घर की गैलरी से कोई लड़का दिखता है। नौजवान की निगाह ऊपर उठती है, रज्जो झट से पीछे हटती है, मानो चोरी पकड़ी गई है। ऐसा नित्य होने लगा। रज्जो समझ गई, तार दोनों ओर से जुड़ चुके हैं। निझावन जी ने प्रेम कहानी को अद्भुत अंदाज़ में बुना और मोड़ दिया है। अगले दिन नौजवान दो बाँहों के घेरे में आया। उसकी दृष्टि उन कलाइयों पर थी जिसने ढेर सारी लाल रंग की चूड़ियाँ पहन रखी थीं। ‘ख़ुश्बू वाला सिक्का’ अपनों द्वारा दिया गया दर्द भोगती उपेक्षित स्त्री की कहानी है। उनका अपराध क्या है? उन्हें उनके पति ने ही नहीं पूछा, फिर भला और कौन पूछता। लली काकी को काल कोठरी में डाल दिया गया, कोई संतान नहीं हुई। किसी के आने पर सावित्री ताई सीढ़ियों पर ताला लगवा देतीं, उनसे कोई मिल नहीं सकता। काकी ने बंदर पाल लिया है, नाम रखा है—मानव। मैं मिलने गया। उन्होंने कहा, “यह जानवर नहीं है, इंसान से बढ़कर है। जब-जब तेरे काका के हाथों पिटी, इसी ने मुझे बचाया। उन्होंने काका की किताबें और पाँच रुपये का सिक्का दिया, बोली, “जब कभी मेरी याद आये, इसे सूँघना, देखना, इसमें से ख़ुश्बू आएगी।” मेरे नाम कम्पनी का तार आया, पदोन्नति मैनेजर के पद पर हुई है और तनख़्वाह में 15 हज़ार की वृद्धि। मैंने सिक्के को पुनः सूँघा, उसमें ख़ुश्बू ही ख़ुश्बू है। 

विकेश निझावन जी की कहानियों को पढ़ते हुए कोई भी कह सकता है, उनका आपसी, पारिवारिक रिश्तों पर चिन्तन अद्भुत है जैसे रेशा-रेशा खोल देते हैं। ‘मछलियाँ’ सोच के दो भिन्न धरातल पर रहने वाले पति-पत्नी की कहानी है। इसमें वह पहलू भी है, कैसे आजकल नाम कमाने के लिए साहित्य की दुनिया में हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। पति द्वारा बात-बात में पत्नी को नीचा दिखाना और उसी के द्वारा अतिथि का सम्मान करवाना ऐसे लेखकों पर कटाक्ष है। पत्नी का मनो-चिन्तन बेहतरीन है। मछलियों के बिम्ब ने कहानी को मार्मिक बना दिया है। वे अपनी कहानियों में भावनात्मकता बुनते हैं और ज्ञान की बातें भी। ‘मातृ छाया’ में लिखते हैं, “कभी भी मुँह से बुरे शब्द नहीं निकालने चाहिए।” “क्यों अम्मा?” अम्मा ने कहा, “हम जो कहते हैं, वह इसी ब्रह्माण्ड में रहता है और घूमते-घामते हमीं पर आ बरपता है।” अम्मा नहीं रहीं। कुन्नू भैया लौटने लगे, बहन श्रुति ने कहा—‘मेरा भी तो कुछ सोचा होता।’ अम्मा ने भाई पर बहन की शादी की ज़िम्मेदारी सौंपी है। निझावन जी की एक और ख़ासियत है, वे कहानियों में मोड़ देते हैं और चमत्कृत करते हैं। कुन्नू का मकान स्वयं ख़रीदना ऐसा ही है और अम्मा के नाम पर ‘कृष्णा मन्दिर’ का शिलान्यास भी। कुन्नू भैया ने कहा, “माँ के बाद भले ही हम दूर चले जाएँ, इस घर पर जो ‘मातृ छाया’ थी, बनी रहेगी।” सभी द्रवित हैं। 

‘अन्ततः’ तनिक भिन्न भाव-चिन्तन की कहानी है। पति-पत्नी का आपसी अहंकार घर को प्रभावित करता है। बच्चे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। वे माँ-बाप को, न छोड़ पाते हैं और न साथ रह पाते हैं, अन्ततः निकल ही जाते हैं। छोटी सी कहानी में निझावन जी व्यापक संदेश देते हैं। ‘अँग्रेजो’ कहानी की अँग्रेजो यानी रज्जो को निझावन जी ने ख़ूब अंग्रेज़ी पढ़ायी है। रज्जो भागी-भागी मायके आ गयी। ख़ूब तमाशा बनायी, रोना-पीटना शुरू कर दी और बोली—उसका आदमी दो रात पहले सोए-सोए चल बसा। रज्जो के पेट में बच्चा है, वह उसे ज़िन्दा रखना चाहती है। दुख में रिश्ते सुधरने लगते हैं। भाभी पुष्पि सहानुभूति से भर उठी और सेवा करने लगी। शीघ्र ही अँग्रेजो सबके संदेह के घेरे में आ गयी। उसने कहा, देखना किसी दिन वह भूत बनकर आयेगा यहाँ। पुष्पि को लग गया—दाल में कुछ काला है। पूछने पर रज्जो मुस्कराई, बोली, “वह मरा नहीं है भाभी! मुझे धमकी देता है, यदि लड़की है तो गिरा दे। नहीं तो तेरी जान ले लूँगा। मेरी इस माँ को कौन समझाएगा?” पुष्पि ने कहा, “मैं हूँ ना!” अँग्रेजो ने भाभी के चरण छू लिए और दोनों गले लग गईं। 

विकेश जी अपने आसपास से, घर से, पड़ोस से कहानियाँ खोज निकालते हैं। ‘हेयर स्टाइल’ कहानी में उन्होंने प्रेम बुना है। माही को लड़के वाले रिजेक्ट कर चले जाते हैं। वह रोती है। पार्लर वाला लड़का उसे सुन्दर कहता है, वह पूछती है—क्या तुम मुझसे शादी करोगे? वह चुम्बन का आमंत्रण देती है। लड़का पिघल जाता है और चुम्बन की बौछार होती है। लड़की ख़ुशी के आँसू रोती है और जाने लगती है। लड़का रोकता है—तुम्हारे बाल बिखर गये हैं, लाओ सँवार दूँ। “नहीं, इन्हें ऐसा ही रहने दो, बहुत सुन्दर लग रहे हैं। मुझे ऐसा ही हेयर स्टाइल चाहिए था।” कहानी में पाठकों की उड़ान के लिए बहुत कुछ है। ‘चाँद में दाग’ सौन्दर्य, प्रेम और मजबूरी की कहानी है। सारे दृश्य यथार्थ हैं। किसी तबेले पर दूध लेने जाइये, ऐसा ही मिलता है। निझावन जी ने अपने अनुभव को ख़ूब शब्द दिए हैं और मार्मिक कहानी बन पड़ी है। ‘पाखंडी’ कहानी जीवन का रहस्य खोलती है। विकेश जी मन की सामर्थ्य जानते हैं और यह भी कि हमारा गहन चिन्तन बहुत कुछ सत्य प्रमाणित कर देता है। आस्था और विश्वास चंद लमहों में नहीं बनते। समय लगता है, कुछ घटनाएँ होती हैं और आस्था व विश्वास का भेद समझ में आता है। उनकी मान्यता है, हम जो कहते हैं, वही लौटकर हमारे जीवन में आता है। हम जो कर्म करते हैं, उसी का फल भोगते हैं। बाबा ने जो कहा, सब सच होता दिखा। यह कहानी भिन्न तरीक़े से धर्म-अध्यात्म की सच्चाई बयान करती है। 

‘औरत’ कहानी में निझावन जी औरत की स्थिति समझाते हैं और उसका मनोविज्ञान भी। सहज नहीं है औरत का जीवन और औरत ही है जो हर परिस्थिति को सह लेती है। ‘डूबते अंधेरे’ सही सीख देती कहानी है। मिसेज खरबन्दा ने सही व्यवहार किया अनुराधा के साथ। जाने वाले चले जाते हैं, हमें शेष बचे लोगों की चिन्ता करनी चाहिए। ‘लली की वापसी’ पारिवारिक सम्बन्धों की मार्मिक कहानी है। कहानी का संदेश यही है, किसी अपने के बोले हुए कटु बचन बहुत दूरियाँ बढ़ा देते हैं। जब तक लली के पति जीवित रहे भाई, बहन के घर नहीं गये। उनकी मृत्यु के बाद लली राखी बाँधने भाइयों के घर आयी। दोनों ओर विह्वलता उमड़ आयी। लली ने कहा—दूरियाँ बढ़ाओ तो बढ़ती चली जाती है। तुम बाऊ के दो शब्दों से हमेशा के लिए कट गये। मैंने भी तो सारी उम्र बर्दाश्त किया। मेरे उस हिस्से में से अगर थोड़ा तुम बर्दाश्त कर लेते तो शायद मैं और जी लेती। लली ख़ुश है, उसे अपने भाइयों की आँखों में चमक दिखाई देती है। 

‘मजमेबाज’ कहानी मार्मिक भी है और हमारे समाज पर व्यंग्य भी। एक ओर बाबा मूसा का मजमा है, बच्ची के नाम पर पैसे बटोर रहा है और किसी यन्त्र की बात कर रहा है जिसको छूने मात्र से संतान हो जायेगी। बिन्द्रा ऑफ़िस के कर्मचारी को देख रहा है जिसके साथ औरत का संवाद रोचक है। उसने कहा, “तुम लोग काम करने नहीं, मजमा लगाने आते हो। तुम लोग मजमेबाज हो।” विकेश जी ने अद्भुत चित्रण किया है और मजमेबाज़ी पर कटाक्ष भी। ‘कितने प्रश्न’ अलग तरह के प्रश्नों से जूझती नारी की कहानी है। विकेश निझावन जी ने इसमें स्त्री-जीवन के मार्मिक प्रसंगों को रेखांकित किया है। संतान न होना किसी भी स्त्री को परेशान करता है। उसे कोई भी सहारा नहीं देता और अंगुली उठाने वाले बहुत हैं। यहाँ स्त्री का वह मनोविज्ञान चित्रित हुआ है जो सहजता से सामने नहीं आता। विकेश जी का साहस ही है जो उन्होंने ऐसी सच्चाई लिख डाली है। ‘फ़ासला’ ग़रीबी, बीमारी, आपसी सम्बन्ध और संघर्ष की कहानी है। सब पैसे का खेल है। पैसा न हो तो जीवन बचाना सहज नहीं होता। पति-पत्नी के बीच के संवाद संवेदनाएँ जगा रहे हैं। पैसे कम हैं बस के भाड़े के लिए। गाँव का फ़ासला बढ़ गया है। लेकिन ज़िन्दगी और मौत का फ़ासला–वह समझ नहीं पा रहा था। 

विकेश निझावन की ‘छुअन’ गहरे सम्बन्धों के बीच की पीड़ा की कहानी है। वृन्दा रंग-रूप से बदसूरत लड़की है। उसकी सौतेली माँ उससे नजात पाना चाहती है और दलदल में ढकेलना चाहती है। उसका पिता किसी दिन ग़ायब हो गया। बाद में ज्ञात हुआ गाड़ी में कटकर मर गया। मन्दिर में कोई अपाहिज मिलता है, वृन्दा को साथ ले जाता है। वह पूछती है—तुम कौन हो? कभी-कभी तुम्हारे बदन से बाजी वाली गंध आती है। विकेश निझावन अपनी कहानियों में सच्चाई का संकेत देते हैं और पाठक चकित होता है। छुअन मार्मिक और सम्बन्धों की आड़ में बहुत कुछ छिपाती, बताती कहानी है। 

विकेश निझावन जी में साहस है। वे मध्यम और निम्न वर्गीय परिवारों की कहानियों के साथ अपने घर-परिवार को भी शामिल करते हैं। स्त्री की दुर्दशा उनकी कहानियों के मूल में हैं। बेबाकी से उनकी नायिकाएँ अपना मन उड़ेल कर रखती हैं और प्रेमी या पति से खुलकर माँग करती हैं। जिसे समाज अनैतिक कहता है, वैसे सम्बन्धों को वे सहज स्वीकार करती हैं या पहल करती हैं। स्त्री मन को जितना विकेश जी ने समझा है, चमत्कृत करता है। उनकी कहानियों में हिन्दी, हरियाणवी, उर्दू, अंग्रेज़ी और भोजपुरी के शब्द भरे पड़े हैं। वे अक़्सर कहानी में किसी पात्र के द्वारा सुनाने की शैली अपनाते हैं। उनके सभी पात्र मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं, जितना व्यक्त करते हैं, कहीं अधिक उनके मनो-चिन्तन में रहता है। यह निझावन जी के लेखन की ज़बरदस्त विशेषता है। मुहावरों, लोकोक्तियों और दार्शनिक चिन्तनों का प्रभाव है उनके लेखन में। कहीं-कहीं प्रवाह खण्डित होता दिखता है जिससे कहानी दुरुह हो जाती है। विकेश निझावन जी को उनके अच्छे लेखन के लिए बधाई और शुभकामनाएँ। 
 

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