बहुत बोल चुके

01-05-2020

बहुत बोल चुके

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।


गाँठ खोलकर अब तक तुमने
जितना भी था, सभी गँवाया।
मेरे यार ज़रा बतला दो
बदले में तुमने क्या पाया?


बहुत तोल चुके, अब न तोलो
जिसको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझा भोला।


अब सबके मन अमृत न घोलो
अमृत घोला, जिनके मन में
उनका मन विषबेल हो गया।
धोखा देकर, खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया।


बहुत बोल चुके, अब न बोलो
अपने मन की गाँठ न खोलो।

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