ज़मीन से उखड़े लोगों की कहानियाँ

17-01-2009

ज़मीन से उखड़े लोगों की कहानियाँ

डॉ. मधु सन्धु

संकलन: वह रात और अन्य कहानियाँ
लेखिका: उषा राजे सक्सेना
प्रकाशक: सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली-११०००२
संस्करण: २००७
पृ०संख्या: १२७

वह रात और अन्य कहानियाँ में उषा राजे सक्सेना की कुल दस कहानियाँ संकलित हैं- एलोरा, तीन तिलंगे, शर्ली सिंपसन शुतुरमुर्ग है, डैडी, सलीना तो सिर्फ शादी करना चाहती थी, चुन्नौती, अस्सी हूरें शिराजा मुनव्वर और जूलियाना, रिश्ते, सवेरा, वह रात।  यह उनका तृतीय कहानी संग्रह है। काव्य संग्रहों के अतिरिक्त इससे पहले उनके प्रवास में तथा वाकिंग पार्टनर कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। मिट्टी की सुगंध में उन्होंने ब्रिटेन के भारतवंशी १७ लेखकों की कहानियाँ संकलित की हैं। उषा ब्रिटेन की एक मात्र हिन्दी पत्रिका पुरवाई की सह-सम्पादिका तथा हिन्दी समिति यू. के. की उपाध्यक्षा हैं। प्रचार प्रसार से जुड़ी उषा राजे सक्सेना का लेखन साउथ लंदन की स्थानीय पत्रिाकाओं एवं रेडियो प्रसारण द्वारा २० वीं शती के आठवें दशक से प्रकाश में आया। उषा विगत तीन दशकों से इंग्लैंड में रह रही हैं।

उषा राजे सक्सेना की कहानियाँ ब्रिटेन में रह रहे यूरोपीय या एशियाई इमिग्रेंटस  की संवेदनाओं, ओढ़े हुए आभिजात्य, आत्मविश्वास और संघर्षों की सवाक्‌ दस्तावेज हैं।

इन कहानियों में बाल एवं किशोर जीवन एवं उसके मनोविज्ञान को नायकत्व दिया गया है। एलोरा की एलोरा पंद्रह वर्ष की इंडो -बिर्टिश किशोरी है। तीन तिलंगे के नाइजल, एलेक्स, जेम्स सत्ररह-अठारह के बीच के हैं। डैडी में बायलाजिकल पिता की खोज में निकली बाईस वर्षीय युवती है। सलीना तो सिर्फ शादी करना चाहती है के पात्र किशोरावस्था से इस देश में अवैध ढंग से रह रहे हैं। चुन्नौती में हाई स्कूल की सोलह वर्षीय छात्रा है। अस्सी हूरें, शिराज मुनव्वर और जूलियाना का शिराज स्कूली छात्र है। रिश्ते की युवा नायिका ने सात वर्ष पहले अपने पिता से उसके अति अभिजात जीवन शैली के कारण विद्रोह किया था। सवेरा में पीटर की किशोरावस्था की त्रासद झांकियाँ प्रस्तुत हैं। वह रात में नौ वर्षीय एनिटा, आठ वर्षीय मार्क और चार-चार वर्ष की रेबेका और रीटा हैं।

ब्रिटेन वेलफेयर स्टेट है और इन कहानियों में वेलफेयर होम/अनाथालय में पलने वाले बच्चों का सैलाब सा उमड़ पड़ा है। तीन तिलंगे का नाइजल गंजेड़ी पिता की क्रूरताओं एवं माँ की मुर्दादिली के कारण अनाथालय में है। एलेक्स को ब्राइटन के प्रसिद्ध होम पाईन ट्री में नाजायज संतान होने के कारण रहना पड़ता है। उसे वहाँ के अत्याचार भुलाए नहीं भूलते। वहाँ साधारण सी बात पर बच्चों की केनिंग करते थें उन्हें बास्टर्ड, जेंब्रा, पिग, निगर जैसे हास्यास्पद नामों से पुकारते हैं। जेम्स माँ द्वारा आत्महत्या करने के कारण अनाथालय में है। सवेरा का पीटर दक्षिण लंदन के फ्रेटरनिटी चिल्ड्रेन्स होम में पला-पुसा है। उसने अपने जन्म देने वाले माता पिता को कभी नहीं देखा। चिलड्रेन होम की मदर और अंगरक्षक एलबर्ट ही उसके आत्मीय हैं। वह रात के चारों बच्चे माँ की हत्या के बाद सेंट वेलेन्टाईन चिल्ड्रेन्स होम भेजे जाते हैं। उषा राजे सक्सेना की इन कहानियों में सर्वत्र त्रासद, लाचार, दुखद, दुराग्रही, असंतुष्ट बचपन फैला हुआ है। बचपन के घाव, कुठाएँ, हीनता ग्रंथि इन्हें अनाचार, गुंडागर्दी, संस्कार हीनता, मौज मस्ती के अवैध स्थलों की ओर मोड़ देते हैं। इसीलिए (तीन तिलंगे में) व्यस्क जीवन की तैयारी के लिए इन बच्चों को होम से होस्टल भेज दिया जाता हैं। स्टॉकवेल के प्रयोगात्मक होस्टल में ऐसे ही बच्चे रहते हैं। यहाँ इन्हें अपराध की दुनिया से दूर रहने और सही ढंग से रोटी रोज़ी कमाने का प्रशिक्षण मिलता है। चुन्नौती में युवा को गर्भवती होने के कारण काउंसिल फलैट की सुविधा और सोशल सक्यूरिटी का धन मिलता है। वेलफेयर स्टेट के यही सकारात्मक पहलू उस देश का आभिजात्य बनाए रखते हैं।

नस्लवाद इन कहानियों में सर्वत्र फैला हुआ है। एलोरा में पिता कहता है, "और ये अँग्रेज....ये गोरे लोग हमारे साथ भला न्याय करेंगें क्या?" तीन तिलंगे के जेम्स की माँ पहले जमाइकन आदमी से प्यार करती थी। फिर देसी आदमी से शादी करती है और काले बच्चे होने पर लज्जा से आत्महत्या कर लेती है। डैडी कहानी में उषा का कथ्य ही यही है कि नस्लभेद बच्चों को भी उद्वेलित करता है। पूरा प्यार-दुलार मिलने के बावजूद नायिका ममी-डैडी की नीली आँखें और भूरे बालों तथा अपनी काली आँखें और काले बालों के कारण उद्वेलित ही नहीं रहती, अपितु अपने बायलाजिकल पिता की खोज में स्पेन के लिए भी निकल पड़ती है।  नस्लवाद का एक रूप अस्सी हूरें, शिराज और जूलियाना में मिलता है। यह बेहद संवेदनशील मुस्लिम बच्चों के जेहाद के नाम पर  शोषित होने की, आतंकवादी बनने की कहानी है। वह रात का पुलिस ऑफिसर रेबेका और रीटा  के काले घुँघराले बाल तथा रंग देखकर जान जाता है कि वे नायिका की हैफ सिस्टर्स हैं और उनके पिता के बारे में पूछताछ शुरू कर देता हैं।

बलात्कार जैसे अपराधों और स्त्री की असहायावस्था का चित्रण विश्व साहित्य की ढेरों कहानियाँ करती हैं। समाज में या साहित्य में इस अपराध/पाप की सजा पीड़ता को ही दी जाती है। एलोरा कहानी की इंडो-बिर्टिश पंद्रह वर्षीय किशोरी नायिका एलोरा ने पारूल के चाचा को उससे बलात्कार की चेष्टा करते देखा और पारूल को इसका शिकार होने से बचाया हैं । वह आई-विटनेस बनकर निर्द्वंद्व भाव से अपराधी को सजा दिलवाने के लिए प्रतिबद्व है। पुलिस, सोशल वर्कर, कोर्ट-कचहरी, वकील, समाज किसी का उसे भय नहीं है।  वह भारतीय माता पिता की इंग्लैंड में जन्मी-पली अधिकार सजग एवं आतंक विमुक्त बेटी  हैं। बिट्रेन की नागरिक है। पिता नस्लवाद की धमकी देकर बेटी को धमकाना या चुप कराना चाहते हैं, पर  बेटी में आत्म विश्वास है- "बाबा, हम इसी देश के बाशिंदे हैं और यही हमारा देश है। यहीं का कानून हमें न्याय देगा, हमारी रक्षा करेगा। हमें अपनी आवाज़ दबानी नहीं उठानी होगी। तभी तो इस देश में, इस समाज में, लोग जानेंगें कि हम भी उन्हीं की तरह इसी देश के टैक्स पेइंग नागरिक हैं। हम यहाँ के अतिथि नहीं हैं, हम यहाँ के रेज़िडेंट हैं।"(२६) उसमें अंग्रेज युवतियों वाला ठसकेदार आक्रोश, तिलमिलाहट, निश्चय और बेबाकी है। पिता की पलायनवादी मानसिकता उसे स्वीकार नहीं।

गरीबी और द्रारिद्रय के बीच जिया जाने वाला अभावग्रस्त जीवन भी यहाँ चित्रित है। उषा राजे सक्सेना की वह रात में बिना हीटिंग के बर्फीला घर है। बिना केयर टेकर के बच्चे हैं। जिस्म फरोशी करने वाली औरतों और उनके बच्चों क पड़ौसियों से मिलने वाली नफ़रत हैं। माँ का कत्ल होते ही उसके चारों बच्चे अलग-अलग संरक्षकों के यहाँ भेज दिए जाते हैं। वह रात उन भारतीय मूल्यों के पुनर्मूल्यांकन के लिए खिड़कियाँ खोल रही है, जो कहते हैं कि विदेशों में पैसा है, रोजगार है, समृद्धि है और इनसे सारे सुख खरीदे जा सकते हैं। सलीना तो सिर्फ शादी करना चाहती है में ब्रिट्रेन में तीन-चार वर्षों से रह रहे अवैध नागरिकों का अंकन है। तीसरे दर्जे के नागरिक- जिनके पास न वोट का अधिकार है, न नेशनलइंशयोरेंस नंबर है, न वेलफेयर स्टेट की कोई सुविधा। सलीना और बुखारी यूगोस्वालिया से आकर यहाँ गैर कानूनी ढंग से बसे इमिग्रेंट हैं। कम पैसों में देर रात तक अवैध फैक्टरी में काम करते हैं, दब-छुप कर रहते हैं और कारावास का भय हर समय सिर पर मंडराता रहता है। उन्हें उस दिन की प्रतीक्षा है, जब सरकार उन्हें वैध घोषित करेगी। उनके पास अगर ड़ेढ सौ पाउण्ड होते तो वे शादी कर सकते थे। पर दोनों की पिछले तीन सालों की बचत सिर्फ २५ पाउण्ड है। इन १५० पाउण्ड के लिए सलीना अपनी ओवरी के अंडे और बुखारी किडनी बेचकर शारीरिक अधूरापन संचित करते हैं।

टूटे घरों की बात करते उषा राजे सक्सेना का सारा ध्यान उन बच्चों पर केंद्रित रहता है, जो उस अपराध की सजा भुगतने को विवश हैं, जो उन्होंने कभी किया ही नहीं।

प्रेमी और पति के व्यवहार भेद को इन कहानियों ने साकारता दी है (शर्ली सिंपसन शुतरमुर्ग है)। माएँ कर्त्तव्य सजग और पिता मौज-मस्ती सजग हैं। जबकि रिश्ते और डैडी मानवीय संवेदनाओं से युक्त एवं इन नकारात्मक स्थितियों से इन्कार करने वाली कहानियाँ हैं।

उषा राजे सक्सेना की वह रात और अन्य कहानियाँ में उन बच्चों के जीवन के अँधियारे क्षण हैं, जो अनाथालय में, होस्टल में या फिर गोद लिए जाने पर नई सुबहों से जुड़ रहे हैं। वे एलोरा की तरह नए चिन्तन की सुबह का संकेत भी दे रहे हैं और युवा की तरह स्वयं अपने भविष्य का चुनाव भी कर रहे हैं।

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