समय का वरदान

13-12-2015

समय का वरदान

आशा बर्मन

साथ था उनका अजाना पर समय कितना सुहाना
एक अनजाने से पथ पर युव पगों का संग उठाना
कुछ झिझक थी, कुछ पुलक थी, एक सिहरन हृदय में थी
जागती आँखों में सपने, मन का हर पल गुनगुनाना
प्यार की लम्बी डगर का, प्रथम ही सोपान
समय का वरदान!

इन्द्रधनुषी समप सुन्दर, पर तभी बदलाव आया।
हुई परिवर्तित मनःस्थिति, और इक ठहराव आया।
मन्द था आवेग, अपनी श्वास में, प्रश्वास में।
आस्था भी गहनतर, अब प्रेम में, विश्वास में॥
था अनोखा नहीं कुछ, बस भाव दान प्रदान
समय का वरदान!

समय बीता साथ कितना, संग सुख-दुख है सहे।
सच यही हम समझ जाते, दूसरे की बिन कहे।
जान लेना ’हाँ’ को उनकी, देखकर मुस्कान किंचित,
समझ लेना ’ना’ को भी बस, लक्ष्य कर भ्रू भंग कुंचित।
प्रेम – गरिमा भरे मन में शांति और विश्राम।
समय का वरदान।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कार्यक्रम रिपोर्ट
कविता - हाइकु
स्मृति लेख
कविता
गीत-नवगीत
व्यक्ति चित्र
हास्य-व्यंग्य कविता
बच्चों के मुख से
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो